भारतीय फुटबाल टीम लगातार दूसरे एशियाई खेलों में भाग नहीं ले पाएगी , क्योंकि भारत एशिया के श्रेष्ठ फुटबाल राष्ट्रों में शामिल नहीं है ।खेल मंत्रालय के नियमों के अनुसार जो खेल एशिया में पहले आठ स्थानों में नहीं आते उनके लिए भाग लेने का कोई शॉर्टकट नहीं हो सकता। नतीजन इंटर कांटिनेंटल कप और सैफ चैंपियनशिप में खिताबी जीत दर्ज करने वाले देश के खिलाड़ी और फुटबॉल प्रेमी निराश हैं।
चंद दिन पहले जो फुटबाल प्रेमी उत्साह से लबालब थे उनके लिए यह बुरी खबर जरूर है लेकिन बिना सोचे समझे हवाई किले बनाना भी तो समझदारी नहीं है। हैरानी वाली बात यह है कि 100 वें नंबर की फीफा रैंकिंग वाली टीम को लेकर सोशल मीडिया के शेखचिल्ली बड़े बड़े सपने देखने – दिखाने लगे थे। कोई कह रहा था कि क्योंकि अगले वर्ल्ड कप में 48 देशों को खेलने का अवसर मिलने वाला है इसलिए भारत भी कतार में खड़ा हो सकता है। कैसे भारत वर्ल्ड कप में खेल सकता है, विविध कोणों से फुटबाल प्रेमियों को सिखाया पढ़ाया जा रहा था। किसी ने भी यह पूछने का साहस नहीं दिखाया कि क्यों देशवासियों को झूठे सपने दिखाए जा रहे हैं? क्यों फुटबाल को चाहने वालों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है?
चूंकि अपनी टीम एशियाड में खेलने के लिए भी योग्य नहीं है इसलिए भारतीय फुटबाल में गम का माहौल पसर गया है। दरअसल, बहुत कम लोग जानते हैं कि एशियाई खेलों की फुटबाल स्पर्धा 23 साल के खिलाड़ियों के लिए है, जिनमें तीन सीनियर खिलाड़ी शामिल किए जा सकते हैं। हालांकि एआईएफएफ ने खेल मंत्रालय से अनुनय विनय किया कि फुटबाल टीम के लिए नियमों में ढील दी जाए लेकिन शायद मंत्रालय ने नियमों से बंधे रहने का हवाला दिया है। अर्थात भारतीय फुटबाल टीम एशियाड में भाग नहीं ले पाएगी।
जहां तक एशिया के श्रेष्ठ फुटबाल देशों की बात है तो फीफा रैंकिंग में बीसवें नंबर का जापान पहले स्थान पर, ईरान और कोरिया क्रमशः दूसरे और तीसरे पर हैं। इन देशों के बाद सऊदी अरब, कतर, इराक, यूएई, ओमान, उज़्बेकिस्तान, चीन, जॉर्डन, बहरीन, सीरिया, वियतनाम, फिलीस्तीन, कृगिस्तान आदि एशियाई देश भारत से बेहतर रैंकिंग वाले हैं। कुछ ऐसे देश भी हैं जिनकी रैंकिंग भले ही पीछे की हो लेकिन भारतीय फुटबाल पर भारी रहे हैं।
भारतीय फुटबाल के लिए सबसे बड़े अफसोस की बात यह कही जा सकती है कि अपने श्रेष्ठ खिलाड़ी सुनील क्षेत्री के मैदान में रहते एशियाड में खेलने का मौका नहीं मिल पाया। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि हमारे फुटबाल आका देश को गुमराह क्यों करते हैं? क्यों नहीं मान लेते कि वर्ल्ड कप और ओलंपिक में खेलने के लिए सालों और दशकों लग सकते हैं। यह भी क्यों भूल जाते हैं कि पिछले सौ साल में भारतीय फुटबाल सौ कदम भी नहीं चल पाई है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |