ऐसे कैसे बनेंगे खेल महाशक्ति?

Whats wrong with Indian sports

पिछले कुछ सालों से भारतीय खेल आका, नेता, मंत्री और तमाम प्रचार माध्यम भारत को खेल महाशक्ति बनाने के नारे बुलंद करते आ रहे हैं । जब कभी कोई भारतीय खिलाडी ओलम्पिक एशियाड और कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप में कामयाबी हासिल करता है तो शीर्ष पर बैठे अवसरवादी खिलाडियों की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ते । उस खिलाडी और खेल की आड़ में जम कर लोकप्रियता अर्जित की जाती है । लेकिन कुछ दिन बाद ही उस खिलाड़ी और उसके खेल को भुला दिया जाता है ।

दूसरी तरफ देश का सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट है, जिसे इंग्लैण्ड और उसके गुलाम देश खेलते आ रहे हैं, जिसने भारत को पूरी तरह क्रिकेट राष्ट्र बना कर रख दिया है । इस दौड़ में क्रिकेट का सबसे ज्यादा साथ हमारा मीडिया दे रहा है । बाकी खेलों और उसके चैम्पियनों के लिए मीडिया के खाते में एक या दो दिन आते हैं लेकिन क्रिकेट की गली कूचे की ख़बरों के लिए हमारे अखबार सोशल मीडिया और टीवी चैनल दिन रात और पूरे साल भर समर्पित हैं । भले ही क्रिकेट ने अपनी मेहनत और जुगाड़ बाजी से मीडिया को अपना गुलाम बना कर रख दिया है लेकिन यह कहाँ का न्याय है कि जिन खेलों के दम पर हमारी सरकार, नेता और खेलोत्थान से जुड़े ‘अभिनेता’ देश को खेल महाशक्ति बनाने की हुंकार भरते हैं, उनकी अनदेखी क्यों की जा रही है ?

भले ही क्रिकेट देश के नेताओं, उनके लाडलों, मीडिया के चाटुकारों और आम भारतीय का पहला खेल बन गया है लेकिन क्रिकेट की उपलब्धियों से भारत वर्ष न तो खेल महंगुरु बन सकता है और ना ही अमेरिका चीन , जर्मनी , जापान , फ़्रांस , रूस की तरह खेल महाशक्ति कहलाएगा । ऐसा तब ही संभव है जब हम ओलम्पिक खेलों में प्रमुख देशों में गिने जाएंगे । लेकिन हॉकी के चंद पदकों और दो व्यक्तिगत स्वर्ण पदकों के दम पर बड़े बड़े दावे करना ठीक नहीं है ।

अफ़सोस इस बात का है कि भारतीय मीडिया और खासकर समाचार पत्र पत्रिकाओं में ओलम्पिक खेलों की राज्य स्तरीय , राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख़बरों के लिए कोई जगह नहीं है । ताज़ा उदहारण संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैम्पियनशिप और हॉकी वर्ल्ड कप हैं , जिनका मीडिया में जिक्र तक नहीं है । इसी प्रकार अन्य ओलम्पिक खेलों की बड़ी से बड़ी ख़बरों पर मीडिया मौन साधे रहता है । तो फिर हमारे प्रधान मंत्री और खेल मंत्री का सपना कैसे पूरा होगा और कैसे हमारे खेल खिलाडियों का भला हो पाएगा ?

देश के कर्णधार भी जानते हैं कि मीडिया अपना काम बिलकुल भी ईमानदारी से नहीं कर रहा । खासकर खेलों को उसने पूरी तरह भुला दिया है । ऐसे में सरकारी स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरुरत है । ऐसी कोई गाइड लाइन बनाई जानी चाहिए , जिसमें प्रचार माध्यमों द्वारा खेलों को बढ़ावा देने के निर्देश हों । ख़ासकर, स्कूल, कालेज , सब जूनियर और जूनियर स्तर के आयोजनों को स्थान मिले ताकि खिलाडियों को प्रोत्साहन मिल सके ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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