सुनील क्षेत्री के बाद कोई नहीं

No one to replace Sunil

सुनील क्षेत्री यदि भारतीय फुटबाल के नायक और पालनहार के रूप में जाने जाते हैं तो इसलिए क्योंकि उनकी जड़ें गहराई तक डूबी हैं। जिस किसी ने उसे स्कूली जीवन में संघर्ष करते और अकेले दम पर आर्मी पब्लिक स्कूल और ममता माडर्न स्कूल को चैंपियन बनाते देखा है, वही जान सकता है कि क्षेत्री जैसे खिलाड़ी को क्यों रोनाल्डो और मैसी जैसों की श्रेणी में शामिल किया जाता है। लेकिन अब सुनील क्षेत्री को फुटबाल को अलविदा कहना ही होगा। उसे जाना होगा, क्योंकि खिलाड़ी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो एक दिन उसे खेल मैदान से हटना ही होता है।

पेले और माराडोना खूब खेले लेकिन उम्र ने उन्हें मैदान से हटने के लिए विवश किया। चूंकि क्षेत्री के पास मैदान में डटे रहने के लिए ज्यादा समय नहीं है इसलिए शीघ्र अति शीघ्र भारतीय फुटबाल को उसके उतराधिकारी को खोजना होगा। वरना बहुत देर हो जाएगी। लेकिन फिलहाल उसका कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा। भारतीय फुटबाल के पास एक भी ऐसा खिलाड़ी नहीं जोकि सुनील के खाली होने वाले स्थान की भरपाई कर सके। यदि है तो कोई बताए। एआईएफएफ के कर्ता धर्ता जानते हैं तो वही बताएं। अर्थात एक बड़े खिलाड़ी के खेल छोड़ने के बाद भारतीय फुटबाल सड़क पर आने वाली है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में फुटबाल के लिए मैदान बचे ही नहीं हैं। तो फिर अच्छे खिलाड़ी कहां से आएंगे। कहां खेलेंगे फुटबाल?

लगभग चालीस साल पहले तक भारतीय फुटबाल का बड़ा नाम था। न सिर्फ राष्ट्रीय टीम में ही , बड़े छोटे क्लबों में सुनील क्षेत्री जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी थे। मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, मोहम्मडन स्पोर्टिग, जेसीटी, सीमा बल, केरला पुलिस, हैदराबाद पुलिस, रेलवे, गोरखा ब्रिगेड, राजस्थान पुलिस, पंजाब पुलिस, मफतलाल और तमाम टीमों में अनेकों नामवर खिलाड़ी शामिल थे या यूं भी कह सकते हैं कि क्षेत्री और भूटिया जैसे खिलाड़ियों की कमी नहीं थी। उनके दम पर ही भारत ने दो बार एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक जीते थे। लेकिन यह कहानी वर्षों पुरानी है। तब देशभर में फुटबाल के लिए बेहतर माहौल था। खेलने के लिए मैदान और पार्कों की भरमार थी। हर राज्य और गली कूचे में छोटे बड़े आयोजन होते थे। लेकिन आज फुटबाल पूरी तरह पेशेवर हो गई है। स्कूल कॉलेज और गली कूचे की फुटबाल में पहले वाली बात नहीं रही।आईएसएल और आई लीग जैसे आयोजन भारतीय फुटबाल की शान माने जा रहे हैं। लेकिन इन आयोजनों से भारतीय फुटबाल का भला नहीं होने वाला और न ही मेवा लाल, जरनैल सिंह, पीके, इंदर सिंह, मगन सिंह जैसे खिलाड़ी तैयार कर पाएंगे, क्योंकि अब ग्रास रूट स्तर पर खिलाड़ी तैयार करने की परंपरा का लोप हो गया है। अब बूढ़े विदेशी भारतीय क्लबों को भा रहे हैं । उन क्लबों को जोकि भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए अपने खिलाड़ियों को रिलीज नहीं करते।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *