क्यों जीते जी अपनी मूर्ति स्थापित करना चाहते थे गुरु हनुमान ?

Why did Guru Hanuman want to install his statue while living

आज 15 मार्च को गुरुओं के गुरु और गुरु श्रेष्ठ स्वर्गीय विजय पाल का 122 वां जन्म दिन है। जी हाँ, वही विजय पाल जोकि आगे चल कर गुरु हनुमान के नाम से विख्यात हुए। वही गुरु जिसकी कृपा से भारतीय कुश्ती ने दुनिया भर में नाम सम्मान कमाया। वही गुरु जिसकी कृपा से आज देश के सैकड़ों हजारों घरों के चूल्हे जलते हैं। उस महान गुरु को करीब से देखने समझने का सौभाग्य जिस किसी को प्राप्त हुआ उसने देखा होगा कि कैसे मैले कुचैले धोती कुर्ते में जीवन यापन करने वाले गुरु ने देश के लिए पहलवानों की कतार लगाई थी।

देश को सुदेश, प्रेमनाथ, सतपाल, करतार, जगमिंदर, सुभाष, सुजीत मान, राजीव तोमर और सैकड़ों अन्य चैम्पियन और रामधन, राज सिंह, महा सिंह राव जैसे कुश्ती गुरु देने वाले गुरु हनुमान का जन्म 15 मार्च 1901 को राजस्थान के चिड़ावा जनपद में हुआ था और २४ मई १९९९ को मेरठ में एक कार दुर्घटना में उन्होंने प्राण त्यागे। ताउम्र अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा लेने वाले गुरु हनुमान जैसी ख्याति शायद ही किसी और खेल गुरु खलीफा ने पाई हो। एक अनपढ़ गुरु का देश और दुनिया में ख्याति पाना सचमुच चमत्कार ही था। जिस के सर पर उनका हाथ पड़ा वह खरा सोना बनकर चमक गया। लेकिन बदले में गुरु को क्या मिला ? उनके शिष्यों ने उन्हें कौन सी गुरु दक्षिणा दी?

जीते जी क्यों मूर्ति स्थापित करना चाहते थे?
गुरु हनुमान के अधिकाँश शिष्य जानते थे कि गुरु हनुमान अपने जीवन काल में ही अपने अखाड़े में खुद की प्रतिमा स्थापित करने की ज़िद्द ठाने रहे। ज्यादातर पहलवान यह कह कर उनका मज़ाक उड़ाते रहे कि गुरूजी पर बुढ़ापा सवार हो गया है। लेकिन अब समझ आता है कि वे क्यों अपनी मूर्ति स्थापित करना चाहते थे। क्या वे समझ गए थे कि उनके जाने के बाद उनके शिष्य उन्हें भुला देंगे? क्या वे अपने शिष्यों की लालची आँखों को भांप गए थे? मुझे लगभग डेढ़ दशक तक गुरु हनुमान को देखने समझने और उनके व्यक्तित्व को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस अवधि में पाया कि उनके हर एक शब्द और हर सोच के मायने थे। कुछ एक अवसरों पर अपने दिल की बात मीडिया के सामने भी रखते थे। एक दिन तो कमाल ही हो गया। उन्होंने चार पांच वरिष्ठ खेल पत्रकारों को दुखी होते हुए कह दिया, “मेरे जाने के बाद मुझे कोई नहीं पूछने वाला। यही कारण है कि मैं अपनी मूर्ति स्थापित करने पर जोर देता हूँ ताकि बिड़ला जी द्वारा पुरस्कार में दिया गया अखाड़ा मेरी मूर्ति से प्रेणा लेकर हमेशा चलता रहे और देश को चैम्पियन पहलवान देता रहे।”

गुरु काश्राप:
हालाँकि चिड़ावा में गुरु जी जीते जी अपनी मूर्ति लगाने में कामयाब हुए लेकिन कुछ शातिरों ने दिल्ली के हनुमान अखाड़े में ऐसा नहीं होने दिया। उनकी मृत्यु के बाद ही मूर्ति लगाई गई| नतीजा सामने है, उनके जाने के बाद अखाड़े का कद लगातार घटता चला गया। आज गुरु हनुमान बिड़ला व्यायामशाला कुश्ती मानचित्र से लगभग अलग थलग पड़ गया है। अब वहां चैम्पियनों की फौजें तैयार नहीं होतीं । अखाड़ा जैसे तैसे घिसट घिसट कर चल रहा है। शायद अपने महां गुरु को भुलाने, राजनीति करने और अखाड़ा हथियाने की लालसा की सजा मिली है गुरु हनुमान अखाड़े को!

हालाँकि गुरु जी के जन्म और जयंती दिवस पर कुछ समर्पित शिष्य हवन और लंगर जैसे पवित्र आयोजन करते हैं लेकिन उनके जादू को कोई भी बरकरार नहीं रख पाया। नई और पुरानी सोच के बीच के टकराव और व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते घंटा घर स्थित गुरूहनुमान अखाड़ा फिर से जी उठेगा, ऐसी उम्मीद कम ही बची है। बाकी गुरु हनुमान की आत्मा जाने!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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