रेफरी, अम्पायर, जज को – आप एक नेक, ईमानदार और निष्पक्ष चरित्र के रूप में जानते पहचानते हैं। लेकिन क्या सचमुच उनकी छवि एक निष्पक्ष इंसान की है और क्या विभिन्न खेलों में उन्हें समुचित आदर सम्मान मिल पाता है?
हालांकि पिछले कुछ दशकों में बहुत कुछ बदला है। विज्ञान और तकनीक की प्रगति और विश्वनीयता के साथ साथ रेफरी और अंपायरों पर भरोसा बढ़ा है और उनकी निंदा काट में कमी आई है । लेकिन भारतीय परिपेक्ष में देखें तो आज भी रेफरी – अंपायर आलोचना के पात्र बने हुए हैं और रोज ही खिलाड़ियों, कोचों और खेल आकाओं की गलियां खाते मिल जाएंगे।
जहां तक क्रिकेट की बात है तो पाकिस्तानी अंपायरों पर सालों तक बेईमान होने का तमगा जड़ा रहा। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के अंपायर एशेज सीरीज और अन्य अवसरों पर आलोचना के पात्र बने रहे। इसी प्रकार हॉकी और अन्य खेलों में भी आरोप प्रत्यारोपों का लंबा दौर चला।
जहां तक फुटबाल की बात है तो फीफा वर्ल्ड कप सहित तमाम आयोजनों में रेफरियों को कोसा गया। महान खिलाड़ियों पेले और माराडोना को भी प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों द्वारा मारा पीटा गया , क्योंकि रेफरी या तो निष्पक्ष नहीं थे या किसी लोभ लालच में पड़कर उन्होंने गलत का साथ दिया। बेशक , आज तकनीक का विस्तार हुआ है, वीडियो द्वारा बारीक से बारीक फैसलों को वास्तविकता को जाना पहचाना जा सकता है लेकिन अत्याधुनिक तकनीक सभी खेल मैदानों में उपलब्ध नहीं हो पाती। नतीजन रेफरी के फैसले को मानना पड़ता है।
भारतीय फुटबाल का स्तर भले ही नहीं सुधर रहा लेकिन खिलाड़ियों और क्लबों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसी अनुपात में रेफरी भी बढ़ रहे हैं । लेकिन मैचों के चलते मार पीट और रेफरियों से दुर्व्यवहार की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है। आम फुटबाल प्रेमी की मानें तो रेफरी ऐसे बन रहे हैं जिन्होंने कभी फुटबाल नहीं खेली। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि रेफरी, खिलाड़ियों और असरदार क्लबों और सट्टेबाजों के प्रभाव में पड़ कर अपने पेशे के साथ बेइमानी कर रहे हैं। यहां तक आरोप लगाया जा रहा है कि रेफरी मिलीभगत करने वालों के शिकंजे में फंस कर राह भटक रहे हैं। बंगाल, दिल्ली, यूपी, बिहार, नॉर्थ ईस्ट , दक्षिण भारत और लगभग पूरे देश में रेफरियों के भटकाव की खबरें आ रही हैं। लेकिन इन सब आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है। सच यह है कि भारतीय फुटबाल को सट्टेबाजों और फिक्सरों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है, ऐसा अधिकांश राज्य फुटबाल इकाइयों का मानना है। कुछ अपुष्ट सूत्रों की मानें तो ऐसे असामाजिक तत्व ही रेफरियों को बदनाम कर रहे हैं। जो उनके चंगुल में नहीं फंसता उसे बदनाम कर बेईमान कह दिया जाता है। लेकिन कुछ एक को छोड़ शत प्रतिशत रेफरी दूध के धुले हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |