भारतीय कुश्ती एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है जहां से निकलने का कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा। लगभग पिछले एक साल से हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं । पहलवान, गुरु खलीफा, फेडरेशन, सरकार का खेल मंत्रालय सभी असमंजस की स्थिति में है। एक बाधा के बाद दूसरी आ खड़ी होती है।
बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन शौषण के आरोप इस कदर भारी पड़े कि एक के बाद एक समस्याओं की कड़ियां जुड़ती चली गईं। साक्षी मलिक, विनेश फोगाट , बजरंग पूनिया जैसे दिग्गज पहलवानों की अगुवाई में धरना प्रदर्शन , पुलिस का आतंक, मार पीट, चीख पुकार और कोर्ट कचहरी से होता हुआ यह मसला लोकतांत्रिक तरीके से हुए चुनाव तक पहुंचा लेकिन फिर वहीं पर लौट आया है जहां से शुरू हुआ था। बल्कि कहना यह होगा कि अब हालात बद से बदतर हो गए हैं।
लेकिन कुश्ती की बदहाली का असली गुनहगार कौन है? कौन है जिसने भारतीय पहलवानों को दर बदर किया है? क्या ब्रजभूषण दूध का धुला है और क्या बड़े नाम वाले आंदोलनकारी पहलवान दोषी है? जहां तक ब्रज भूषण की बात है तो नेताजी का मामला कोर्ट में है और वे सरेआम कह चुके हैं कि उनका भविष्य में कुश्ती से कोई लेना देना नहीं होगा। उनके करीबी और बिजनेस पार्टनर संजय सिंह खेल मंत्रालय की देख रही में फेडरेशन अध्यक्ष चुने गए लेकिन अगले ही दिन नेता जी की दबंगई उनकी टीम को ले डूबी।
फिलहाल खेल मंत्रालय के निर्देश पर आईओए द्वारा गठित तीन सदस्यीय एडहॉक कमेटी कुश्ती का कारोबार देखने के लिए नियुक्त की गई लेकिन इस एडहॉक कमेटी से भी पहलवान नाखुश हैं । हैरानी वाली बात यह है कि एडहॉक कमेटी में बाजवा, वूशु से, सोमैया हॉकी से और मनीषा कंवर बैडमिंटन से हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि कुश्ती का विवाद निपटाने के लिए किसी पहलवान को शामिल क्यों नहीं किया गया?
विवाद के चलते भारतीय फेडरेशन पर अंतरराष्ट्रीय इकाई द्वारा प्रतिबंध लगाया गया। उम्मीद की जा रही थी कि चुनाव के बाद प्रतिबंध बहाल हो जाएगा लेकिन चुनी गई कमेटी को खेल मंत्रालय ने अमान्य घोषित कर दिया। अब एक और बड़ा विवाद जूनियर पहलवानों के विरोध के रूप में सामने आया है। जूनियर पहलवानों ने साक्षी, विनेश और बजरंग को अवसरवादी और कुश्ती का दुश्मन करार दिया और उनके विरुद्ध ठोस कार्यवाही की मांग की है। अर्थात विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |