चीन की मेजबानी में 23सितंबर से 8 अक्तूबर तक आयोजित होने वाले एशियाई खेलों में भारतीय तैयारी के बारे में आईओए के पूर्व सचिव राजा रणधीर सिंह डंके की चोट पर कहते हैं , “इस बार सौ के पार”। खेलों की गंभीर जानकारी रखने वाले बहुत से लोग इस विज्ञापन से इतफाक रखते हैं तो कुछ एक कह रहे हैं कि पदक कोई पेड़ पर थोड़े ही लगे होंगे, हिलाओ और लूट लो। लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जोकि सीधे सीधे भारत के दावे को खारिज करता है। यह वर्ग भारतीय तैयारियों को जंतर मंतर पर महिला पहलवानों के धरना प्रदर्शन से जोड़ कर देख रहा है।
जहां तक एशियाई खेलों में भारत के श्रेष्ठ प्रदर्शन की बात है तो जकार्ता एशियाड, 2018 में भारतीय खिलाड़ियों ने अपना रिकार्ड तोड प्रदर्शन किया था और कुल 69 पदक जीते थे। अर्थात इस रिकार्ड से बेहतर करने के लिए हमारे खिलाड़ियों को कड़ी मेहनत करनी होगी। यह ना भूलें कि मेजबान चीन अपने घर पर किस कदर ताकतवर है।
हालांकि पिछले कुछ सालों में हमारे खिलाड़ियों ने खासी प्रगति की है। उनकी तैयारी पर सरकार करोड़ों खर्च कर रही है। उन्हें विदेशी कोच ट्रेन कर रहे हैं और लगातार विदेशों में ट्रेनिंग के लिए भेजा जा रहा है। लेकिन क्या हम 100 का आंकड़ा पार कर पाएंगे ? यह सही है कि मुक्केबाजी, कुश्ती, बैडमिंटन, निशानेबाजी, हॉकी , भारोतोलन आदि खेलों में हमारे पुरुष और महिला खिलाड़ी लगातार पदक जीत रहे हैं । तो फिर महिला पहलवानों के धरना प्रदर्शन का खिलाड़ियों पर कैसे प्रतिकूल असर पड़ सकता है?
कुछ खेल वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि महिला पहलवानों की आपबीती सुनकर अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ी भी आहत हैं और उन पर भी कहीं न कहीं असर पड़ सकता है। इसलिए जरूरी यह है कि पहलवानों का मसला कुछ एक दिनों में हल कर लिया जाए ताकि कुश्ती और तमाम खेलों से जुड़े खिलाड़ी जी जान से तैयारी में जुट जाएं । आखिर पदकों का शतक जमाना हंसी खेल नहीं है । साथ ही भारत को अपनी रैंकिंग भी सुधारने होगी। 1951 के पहले खेलों में भारत पदक तालिका में दूसरे नंबर पर था। तत्पश्चात रिकार्ड बिगड़ता चला गया। भारत यदि पहले चार में स्थान बना ले तो इसे संतोषजनक माना जा सकता है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |