पीटी उषा और मेरीकॉम भी महिलाओं का दर्द नहीं समझ पाईं

Indian wrestling in suicidal Zone

पिछले कुछ दिनों में भारतीय प्रचार माध्यमों पर जो खेल खबरें सुर्खियों में रहीं उनमें सबसे ज्यादा चर्चा पहलवानों की हुई। कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह पर गंभीर आरोप लगे। महिला पहलवानों के एक वर्ग ने जम कर कीचड़ उछाला। कुछ नामी पुरुष पहलवान भी उनके समर्थन में आगे आए और जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन का दौर चला, शोर शराबा मचा और अब सब कुछ लगभग शांत हो गया है।

खबर है कि फेडरेशन और पहलवानों के बीच सुलह हो गई है और दोनों पक्षों ने अपने हित में हालात के साथ समझौता कर लिया है। हैरानी वाली बात यह है कि जो पहलवान जम कर गरज बरस रहे थे , उनके सुर ठंडे पड़ गए हैं। उनमें से बहुत से तो मुख्य धारा से भी जुड़ चुके हैं और अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भाग ले रहे हैं।

सवाल यह पैदा होता है कि कई दिनों के शोर – शराबे, आरोप प्रत्यारोपों के बाद हर तरफ सन्नाटा कैसे छा गया? आग बबूला हो रहे पहलवान और उनके समर्थक अंडर ग्राउंड क्यों हो गए हैं? महिला सशक्ति करण का दम भरने वालों को सांप क्यों सिंह गया है।

इसमें दो राय नहीं कि पीटी ऊषा और मैरीकाम भारतीय खेल इतिहास की शीर्ष महिला खिलाड़ी हैं और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपने का फैसला भी स्वागत योग्य है लेकिन महिला पहलवानों की भावनाओं को समझने में नाकाम रही हैं। ऊषा भारतीय ओलंपिक संघ की प्रधान हैं और मैरीकाम को खेल मंत्रालय ने महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच करने वाली समिति का मुखिया बनाया है। लेकिन फिलहाल जांच पड़ताल का काम पूरा नहीं हो पाया है। बस तारीख पर तारीख बदल रही है। ऐसा किस लिए ? क्यों जांच समिति जांच का काम पूरा नहीं कर पाई?

जांच के नाम पर जो कुछ चल रहा है उसे लेकर तरह तरह की बातें की जा रही हैं। एक वर्ग कह रहा है कि पहलवानों ने अपने अध्यक्ष पर फिर से भरोसा कर लिया है तो दूसरा वर्ग कह रहा है कि पहलवानों के आरोपों में दम नहीं था। उन्हें दलगत राजनीति के चलते मोहरा बनाया गया। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो ऊषा और मैरीकाम से नाराज हैं।

हालांकि महिला खिलाड़ियों के यौन शोषण के कई मामले जब तब उठते दबते रहे हैं । लेकिन शायद ही किसी को सजा हुई हो। दूर जाने की जरूरत नहीं है , हरियाणा के खेल मंत्री और ओलंपियन हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह पर भी उंगली उठी , विरोध के सुर सुनाई दिए लेकिन यह मामला भी अब ठंडे बस्ते की तरफ बढ़ चला है। यहां भी तारीखें बदल रही हैं और महिला शक्ति का उपहास उड़ाया जा रहा है।

शायद ही कोई भारतीय खेल होगा जिसमें महिला खिलाड़ियों और कोचों के साथ दुर्व्यवहार के मामले प्रकाश में ना आए हों। साइकलिंग, हॉकी, फुटबाल, जूडो, कराटे, ताइक्वांडो, तैराकी, एथलेटिक आदि खेलों में महिला हिलाडियों ने आवाज बुलंद की लेकिन उनकी आवाज को दबा दिया गया। लेकिन ऊषा और मैरीकाम के रहते भी जब सिर्फ तारीख बदल रही हैं तो फिर महिला खिलाड़ियों को न्याय कब मिलेगा?

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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