देश का चुनावी महापर्व ठीक ठाक संपन्न हो गया है । सरकार का गठन हो चुका है और बकायदा खेल मंत्री और खेल राज्य मंत्री ने भी पद भार संभाल लिया है लेकिन चंद सप्ताह बाद पेरिस में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलोत्सव की कहीं कोई चर्चा दिखाई सुनाई नहीं पड़ रही।
सभी देश दुनिया के सबसे बड़े महाकुंभ में भाग लेने और अधिकाधिक मान सम्मान , पदक और प्रतिष्ठा लूटने के लिए जी जान से तैयारी में जुटे हैं। पदक तालिका में कौन सबसे ऊपर होगा और कौन सा देश किस किस खेल में खिताब का दावेदार हो सकता है जैसे आकलन शुरू हो चुके हैं। लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में फिलहाल ओलंपिक खेलों को लेकर कुछ खास सुनाई दिखाई नहीं पड़ रहा।
कोरोना प्रभावित टोक्यो ओलंपिक के बाद से भारतीय खिलाड़ी पेरिस ओलंपिक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह सही है कि भारत श्रेष्ठ खेल राष्ट्रों की कतार में शामिल नहीं है। यूरोप, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के प्रमुख देशों के नजरिए से देखें तो भारत की भागीदारी का ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। हां, इतना जरूर है कि पुरुष हॉकी, मुक्केबाजी, कुश्ती, बैडमिंटन, वेटलिफ्टिंग निशानेबाजी और कुछ हद तक एथलेटिक आदि खेलों में भारतीय भागीदारी के मायने हो सकते हैं।
खेल प्रेमी जानते ही हैं कि सबसे ज्यादा पदक एथलेटिक, तैराकी और जिम्नास्तिक आदि खेलों में दाव पर होते हैं। निशानेबाजी में भी खासे पदक दाव पर रहते हैं। फिलहान सबसे बड़ी संभावना की बात करें तो एथलेटिक में नीरज चोपड़ा एकमात्र उम्मीद हैं। लेकिन तैराकी और जिम्नास्तिक में कोई उम्मीद नहीं है । इन खेलों में तो हम एशियाड में भी पिछली कतार में हैं। टीम खेलों में पुरुष हॉकी एक बार फिर से भारत को पदक तालिका में सम्मानजनक स्थान दिला सकती है या जिन खेलों में हैं पहले पदक मिलते रहे हैं उन पर इस बार भी भरोसा किया जा सकता है। लेकिन चुनाव से पहले से खामोश हमारे खेल आका, खेल मंत्रालय , बड़बोले खेल संघ और खिलाड़ी खामोश नजर आते हैं । दावों और प्रति दावों की गूंज सुनाई नहीं पड़ रही।
चुनाव से पहले जो नेता सांसद जग जीतने का दम भर रहे थे और भारत को खेल महाशक्ति बनाने का दावा कर रहे थे उनकी बोलती बंद क्यों है?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |