कोहली के विराट फैसले के पीछे किसका हाथ?

virat kohli steps down as test captain

दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध टेस्ट श्रृंखला हारने के बाद कप्तान विराट कोहली का टेस्ट कप्तानी से इस्तीफ़ा देने का फैसला कितना सही है इसके बारे में तो खुद कप्तान ही बेहतर जानते हैं। लेकिन यह कहना सरासर गलत होगा कि कप्तानी छोड़ने के लिए उन पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं था। यह न भूलें कि कोहली ने जब टी 20 कि कप्तानी छोड़ी थी तो भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने उनसे वन डे की कप्तानी भी छीन ली थी।

बोर्ड चाहे कुछ भी सफाई दे, कितनी भी लीपा पोती करे लेकिन इतना तय है कि उसके शीर्ष पदाधिकारी विराट से कप्तानी छीनने और उसे टीम से बाहर करने के लिए मन बना चुके थे। बाकायदा सचिव जयंत शाह ने तो विराट को कप्तानी छोड़ने के लिए बधाई तक डे डाली। वह यह भी भूल गए कि विराट देश के सफलतम कप्तान हैं, जिसकी कप्तानी में भारत ने 68 में से 40 टेस्ट मैच जीते हैं जोकि किसी भारतीय कप्तान कि सबसे बड़ी कामयाबी है।

एक कप्तान और बल्लेबाज के रूप में विराट ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए लेकिन किसी ने भी उनसे यह तक नहीं पूछा गया कि आखिर कप्तानी क्यों छोड़ रहे हैं! ज़ाहिर है कप्तान को लेकर स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी। विश्व क्रिकेट के महानतम बल्लेबाज विवियंरिचर्ड्स ने विराट कि उपलब्धियों को शानदार बताते हुए कहा है कि वह विश्व क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में शुमार किए जाएंगे। विराट के साथ टीम मैनेजर की भूमिका निभानेवाले रवि शास्त्री ने उन्हें भारत का सबसे आक्रामक और सफल कप्तान बताया है।

लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि यकायक विराट को सभी विधाओं कि कप्तानी छोड़ने के लिए विवश क्यों होना पड़ा? क्या उन पर किसी प्रकार का दबाव था? क्या बोर्ड अध्यक्ष सौरभ गांगुली और सचिव शाह कि आँख की किरकिरी बन रहे थे? हालांकि विराट ने बीसीसीआई, रवि शास्त्री, पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और टीम साथियों का धन्यवाद किया है और कहा है कि उन सभी के सहयोग से वह अपना 120 फीसदी देने में सफल हुआ है लेकिन जहां तक टीम साथियों की बात है तो विराट और कुछ सीनियर खिलाडियों के बीच तनातनी की ख़बरें भी आती जाती रहीं।

भले ही विराट कुछ भी कहें लेकिन कुछ साथी खिलाडियों के दिखावे के सहयोग और बोर्ड कि गलत मंशा को लेकर वह खासे परेशान थे। खासकर अध्यक्ष सौरभ गांगुली और उनके बीच की तनातनी बढ़ रही थी, जिसे लेकर उन्हें शायद अप्रिय फैसले लेने पड़े। गांगुली भले ही बोर्ड अध्यक्ष हैं लेकिन एक समय उन्हें भी टीम में स्थान बनाए रखने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़े थे| एक पूर्व खिलाडी के अनुसार जो खिलाडी गाड़ फादर के रहते कप्तान से बोर्ड अध्यक्ष बना उसे विराट की विंदास छवि कैसे पसंद आ सकती है? बस यही कारण है कि एक आक्रामक बल्लेबाज और बेहद आक्रामक कप्तान को आत्मसमर्पण की मुद्रा में मैदान छोड़ना पड़ेगा।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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