खेल दिवस पर ये सन्नाटा क्यों है भाई!

khel awards

सचमुच ऐसा सन्नाटा पहले कभी नहीं देखा। जब से खेल अवार्डों की शुरुआत हुई है लगभग दो चार महीने पहले चहल पहल शुरू हो जाती थी लेकिन अगस्त महीना बीतने को है। कहीं कोई दौड़ भाग और जुगाड़ दिखाई नहीं पड़ रह। तो फिर हंगल चचा की चिंता तो वाजिब ही है।

चूंकि 29 अगस्त को हॉकी जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और इसी तिथि पर राट्रीय खेल अवार्ड बांटने की परम्परा रही है, जोकि अब टूटती नजर आ रही है। पिछले साल खेल अवार्डों का नाम पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम से हटा कर ध्यान चंद खेल अवार्ड किया गया तो शायद ही किसी ने आपत्ति व्यक्त की होगी। चूंकि टोक्यो ओलंम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों ने अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया था इसलिए ओलंम्पिक और पैरालम्पिक पदक विजेताओं को अवार्डों से लबा लब कर दिया गया। कुछ ऐसे भी सम्मान पा गए जोकि वर्षों से कतार में लगे थे और उनके नाम पर कभी गौर नहीं किया गया।

बेशक, पिछली बार अनेकों ने जाती बाहर के मेवे लूटे। 12 खेल रत्न बनाए गए। 36अर्जुन दिए गए तो अनेकों द्रोणाचार्य और ध्यान चंद सम्मान ले उड़े। कुछ संस्थान भी हकदार बने। चूंकि देश में टोक्यो ओलंम्पिक की कामयाबी का खुमार चढ़ा था इसलिए किसी ने उंगली नहीं उठाई। इस प्रक्रिया में विलम्ब हुआ और नवंबर में जाकर अवार्ड बांटे गए थे।

लगता है इस बार भी अवार्डों की बंदरबांट में समय लगने वाला है। लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि अब तक कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है। अवार्ड कमेटियों का गठन नहीं किया गया है और ना ही खिलाड़ी और कोच पिछले सालों की तरह मारे मारे फिर रहे हैं। सम्मान पाने के लिए तिकड़म लगाने वाले और जुगाड़ करने वाले खिलाड़ी कोच भी सुनाई दिखाई नहीं पड़ रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ सालों में अवार्ड कमेटियों ने बड़ी दरियादिली दिखाई है और कम नम्बर वालों को भी पास कर दिया गया।

चूंकि खेल दिवस पर अवार्डों की कहीं कोई चर्चा नहीं है , सीधा सा मतलब है कि खेल मंत्रालय के दिमाग में कुछ और चल रहा है। हो सकता है कामनवेल्थ खेलों की कामयाबी को भुनाने के लिए इस बार कुछ और अवसर तलाशें जाएं।

कुछ पूर्व अवार्डी कह रहे हैं कि अब राष्ट्रीय खेल अवार्ड महज पैसे का खेल रह गए हैं। जरा सी कामयाबी मिलते ही खिलाड़ी को अर्जुन और खेल रत्न बना दिया जाता है। यदि पिछले साल की तरह रेबड़िया बांटी गईं तो वह दिन दूर नहीं जब खेल अवार्ड के लिए खिलाड़ी और कोच खोजे नहीं मिलेंगे।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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