महिला फुटबाल : सौतेला व्यवहार क्यों?

step motherly treatment of Womens Football

पहली दिल्ली मेंस प्रीमियर लीग के सफल आयोजन के बाद दिल्ली साकर एसोसिएशन और उसकी सहायक इकाई फुटबाल दिल्ली ने एक और मील का पत्थर स्थापित कर लिया है । पहली विमेंस प्रीमियर लीग और महिला लीग का एक साथ आयोजन कर दिल्ली ने भारतीय फुटबाल में अलग पहचान तो बनाई है लेकिन महिला लीग के सफल आयोजन के लिए आयोजक यदि अपनी पीठ थपथपाना चाहें तो सरासर गलत होगा । कारण , आयोजन शुरू से आखिर तक खामियों से पटा पड़ा था ।

इसमें दो राय नहीं कि मेंस प्रीमियर लीग चंद त्रुटियों के चलते ठीक ठाक आयोजित की गई और एक नया क्लब खिताब जीतने में सफल रहा । अधिकांश मुकाबले कड़ी टक्कर वाले और रोमांचक रहे , जिनकी चौतरफा तारीफ़ हुई । दूसरी तरफ महिला लीग भले ही शान्ति के साथ निपट गई लेकिन महिला खिलाडियों और क्लबों ने मैच दर मैच नाराजगी और नाखुशी ज़ाहिर की । खैर रेफरियों का रोना वर्षों से चला आ रहा है और जब तक फुटबाल खेली जाएगी रेफरियों पर उँगलियाँ उठती रहेंगी लेकिन लाखों खर्च कर महिला क्लब चलाने वाले क्लब अधिकारियों और खिलाडियों को बहुत सी ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा जिन्हें रोका जा सकता था ।

दिल्ली फुटबाल के कर्णधार जानते हैं कि उनके सभी क्लब बाहरी खिलाडियों के दम पर चल रहे हैं । हरियाणा , यूपी, उत्तराखंड, कोलकत्ता, मिजोरम, सिक्किम और अन्य प्रदेशों की लड़कियां देश की राजधानी की फुटबाल को लाभान्वित कर रही हैं । घर से मीलों दूर खेलने आई लड़कियों को अपने क्लब से कोई शिकायत नहीं । उन्हें शिकायत है आयोजन समिति से जिसके पास अच्छे रेफरी ज्यादा नहीं है। दूसरे, नेहरू स्टेडियम का गेट 13 ग्राउंड शुरू से विवादों में रहा । क्लबों और बॉल ब्वायज के बार बार शिकायत करने के बावजूद मैदान के चारों तरफ फैले जंगल की साफ़ सफाई नहीं किया जाना बड़ी चूक कही जा सकती है।

लेकिन इस प्रकार का सौतेला व्यवहार सिर्फ दिल्ली में नहीं किया जा रहा। देशभर की महिला खिलाड़ी फुटबाल कर्णधारों के दोहे चरित्र से हैरान परेशान हैं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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