दुनिया के तमाम देश फीफा विश्व कप का लुत्फ़ उठा रहे हैं और इस धरती के सबसे लोकप्रिय और दिलेरों के खेल के महानतम आयोजन को देख समझ कर भविष्य की रणनीति बना रहे हैं । जिन्हें विश्व कप में खेलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ उनके लिए सीखने समझने का अवसर है । बहुत से देशों के फुटबाल जानकार एक्सपर्ट्स और कोच 32 टीमों की खूबियों को करीब से देख रहे हैं और भविष्य में उनके जैसा करिश्मा कर अपने देश की फुटबाल को आगे बढ़ाने की रणनीति बनाने में जुट गए हैं । लेकिन अपने भारत महान में एक अलग तरह का विश्व कप चल रहा है, जिसके चलते भारतीय फुटबाल बर्बाद होती आई है और आगे भी होती रहेगी ।
उधर क़तर में दुनिया के दिग्गज फुटबाल राष्ट्र अपने खेल कौशल से देश का मान सम्मान बढ़ा रहे हैं तो भारत में अधिकांश फुटबाल इकाइयां, अकादमियां, अभिभावक, कोच और खिलाडी संतोष ट्राफी नाम के भूत से लड़ भिड़ रहे हैं । एक ज़माना था जब संतोष ट्राफी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में अपने राज्य के लिए खेलना बड़े सम्मान की बात थी । हर खिलाडी का सपना इस ट्राफी में खेल कर अपने राज्य का कलर पहनने का होता था । लेकिन आज भारतीय फुटबाल की प्राथमिकताएं बदल गई हैं और यही बदलाव भारतीय फुटबाल के विनाश का कारण भी बना है ।
विश्व कप के चलते देश भर में संतोष ट्राफी के लिए टीमों की चयन प्रक्रिया चल रही है । बंगाल , पंजाब , महाराष्ट्र , दिल्ली , यूपी , उत्तराखंड , हरियाणा , एमपी , हिमाचल , दक्षिण भारत , पूर्वोत्तर के प्रदेशों में राज्य की टीमों के गठन क़े लिए अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन की सदस्य इकाइयां यकायक हरकत में आ गई हैं । जिन राज्यों में वार्षिक लीग का आयोजन तक नहीं किया जाता , जिन राज्यों के खिलाडी भ्र्ष्ट अधिकारीयों से हैरान परेशान हैं उनमें टीमों का गठन पदाधिकारियों की गुंडागर्दी उनकी मनमर्जी और अपने अपनों को रेबड़ियाँ बांटने की परंपरा के आधार पर किया जा रहा है । जिन खिलाडियों ने वार्षिक लीग और अन्य आयोजनों में शानदार प्रदर्शन किया उन्हें नज़रअंदाज किया जा रहा है और राज्य एसोसिएशनों के सदस्यों के निक्कमे लाडले हकदार खिलाडियों का हक़ मार रहे हैं । नतीजन हर तरफ असंतोष व्याप्त है । क्या भारी बहुमत से जीतने वाले एआईएफएफ अधिकारियों को ऐसी कोई जानकारी है ? यदि नहीं तो बहुत से अच्छे खिलाडी कोर्ट की शरण ले सकते हैं | बेहतर होगा पहले ही होश में आ जाएं |
वर्तमान भारतीय फुटबाल में आईएसएल और आई लीग जैसे आयोजन भारत को हंसी का पात्र बना रहे हैं । लेकिन चूँकि इस खेल में देश के धनाढ्य और गणमान्य लोग शामिल हैं इसलिए बूढ़े विदेशी खिलाडियों के इस अखाड़े में देश की फुटबाल चारों खाने चित हो रही है । दूसरी तरफ जो संतोष टॉफी कभी मान सम्मान और गौरव का प्रतीक थी उसे अब लूट खसौट, धोखधड़ी और फुटबाल के बलात्कार का कारण बताया जा रहा है । कई अभिभावकों और खिलाडियों का आरोप है कि संतोष ट्राफी भारतीय फुटबाल का सबसे बड़ा असंतोष बन कर रह गई है । कारण अधिकांश टीमों के आधे से अधिक खिलाडी सिफारशी होते हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |