रोनाल्डो क्यों सर्वकालीन श्रेष्ठ है !

How a goal changed everything for Ronaldo

पिछले बीस सालों में जिस खिलाड़ी ने खेल जगत में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं और सर्वाधिक रिकर्डतोड प्रदर्शन किए वह निसंदेह पुर्तगाल के महान फुटबालर क्रिटियानों रोनाल्डो है। मैनचेस्टर यूनाइटेड में धमाकेदार प्रदर्शन के साथ फुटबाल जगत में अवतरित होने वाले रोनाल्डो उन खिलाड़ियों
में शुमार किए जाते हैं जिनके पास खबर और सुर्खियां खुद चल कर आती हैं । फिर चाहे कठिन कोण से गोल जमाने की कलाकारी हो या फ्री किक पर प्रतिद्वंद्वियों को चकमा देने का हुनर रोनाल्डो के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं रहा। सही मायने में वह सोलह कला पूर्ण फुटबालर रहा है। ड्रिबलिंग में अव्वल, गोल जमाने में श्रेष्ठ, बला का हेड वर्क, पेनल्टी से गोल करने में अद्वितीय, बाइसिकिल वाली जमाने का महारथ सब कुछ उसके लिए सहज रहा। शायद इसी लिए विराट कोहली उसे सर्वकलीन श्रेष्ठ मानते हैं।

यूँ तो फुटबाल जगत ने पेले महान और माराडोना जैसे दिग्गज खिलाड़ियों की महानता को देखा और उनका यशगान किया । मेस्सी और नेमार जैसे समकालिकों के बीच रोनाल्डो को प्रतिस्पर्धा करते देखा लेकिन पुर्तगाल का यह लाडला खिलाड़ी कुछ मायनों में अन्य से हटकर रहा। जिस थके हारे रोनाल्डो को कतर विश्व कप में देखा गया वह कदापि ऐसा नहीं था। उसे अपने समकालीन खिलाड़ियों में यूं ही श्रेष्ठ नहीं माना गया। उसके पास कुछ ऐसा था जिसने उसे बाकी से अलग और बेहतर बनाया। लगभग डेढ़ दशक तक उसके और मेस्सी के बीच डाल डाल, पात पात वाली स्थिति रही। राष्ट्रीय और क्लब टीमों के लिए गोल जमाने की जैसे दोनों के बीच होड़ लगी थी। मेस्सी अपनी ड्रिबलिंग और चतुराई से विरोधियों को छकाने और गोल जमाने में माहिर रहा तो रोनाल्डो की अतिरिक्त खूबी उसका टफ खेल रहा। उसे इसलिए गोल मशीन कहा गया क्योंकि कभी भी कहीं से भी गोल करने का उसे महारथ हासिल था।

लेकिन तमाम रिकार्ड बनाने के बावजूद वह पुर्तगाल को विश्व खिताब नहीं दिला पाया। पांच फीफा कप खेले, पांचों में गोल जमाए लेकिन पुर्तगाल को खाली हाथ लौटना पड़ा। कतर विश्व कप रोनाल्डो के दुख में कुछ और पीड़ा जोड़ गया। रोनाल्डो ऐसा अभागा कप्तान साबित हुआ, जिसने न सिर्फ टीम में अपना नियमित स्थान खोया, खाली हाथ भी लौटना पड़ा।

दरअसल रोनाल्डो ने जैसे ही अपने पुराने क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड में फिर से कदम रखे, उसके बुरे दिनों की शुरुआत हुई । क्लब अधिकारीयों , कोच और साथी खिलाडियों के साथ वाद विवाद का सिलसिला इस कदर शुरू हुआ कि राष्ट्रीय टीम का कप्तान होने के बावजूद भी उसे नियमित खिलाडी नहीं माना गया । यह सही है कि बढ़ती उम्र का असर उसके खेल पर पड़ा लेकिन फुटबाल जानकार और पूर्व चैम्पियन मानते हैं कि उसका मैदान पर उपस्थित रहना ही क्लब और देश की टीम के लिए लाभकारी हो सकता था । उसे समझने की भूल का ही नतीजा है कि मैनचेस्टर यूनाइटेड और पुर्तगाल अपना श्रेष्ठ नहीं दे पाए ।

कुछ आलोचकों का मानना है कि बाद के सालों में वह रोंदू खिलाडी की भूमिका में नजर आया । हालाँकि कुछ लोग उसे सेल्फिश मानते हैं लेकिन ऐसा कदापि नहीं है । वह हमेशा अपने से कम उम्र खिलाडियों के बीच अलग से नजर आया और उसने हर बार खुद को साबित किया । यही कारण है कि चंद आलोचकों के रहते उसने करोडों फैंस बनाए । पांच बच्चों का पिता होने के बावजूद भी वह विश्व कप की नाकामी को भुला कर नई पारी शुरू करने जा रहा है। खबर है कि किसी पेशेवर क्लब ने उसे रिकार्ड भुगतान के साथ अपने बेड़े में शामिल करने का फैसला किया है । इसलिए चूँकि रोनाल्डो का नाम ही काफी है ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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