भारतीय फुटबाल टीम की एशियाड भागीदारी पर लगभग पूर्ण विराम लग चुका है। इस प्रकार भारत लगातार दूसरे एशियाई खेलों में भाग नहीं ले पाएगा। फुटबाल प्रेमियों के लिए यह बुरी खबर जरूर है लेकिन हमें यह समझना होगा कि विश्व रैंकिंग में सौवें से 99 नंबर पर चढ़ने वाली टीम एशिया में 18 वें स्थान पर है। अर्थात यदि भारत को भागीदारी का मौका मिलता भी तो यह सिर्फ पाला छूने वाली उपलब्धि ही हो सकती है। तो फिर बेकार का हंगामा क्यों मचा है?
देश के फुटबाल जानकार कह रहे हैं कि एआईएफएफ के सामने साफ तस्वीर है फिर भी पता नहीं क्यों बार बार एशियाड में भाग लेने का राग छेड़ा जा रहा है। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि आईओए अध्यक्ष पीटी ऊषा और सीईओ कल्याण चौबे में ठन गई है, जिसके चलते भारत की भागीदारी मुश्किल है। यह भी पता चला है कि फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे अमित शाह के दरबार में भी गुहार लगा चुके हैं। वहां से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया है।
इसमें दो राय नहीं कि एशियाई खेल भारतीय फुटबाल की पहली सीढ़ी हैं, जिसे टाप कर ही भारतीय खिलाड़ी आगे बढ़ सकते हैं। हालांकि इंटर कांटिनेंटल कप और सैफ चैंपियनशिप जीतने पर खूब हंगामा बरपाया जा रहा है और इन खिताबी जीतों को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे कि भारत फुटबाल महाशक्ति बन गया हो। कोई भी यह जानने और पूछने का प्रयास नहीं कर रहा कि इस प्रकार शोर क्यों मचाया जा रहा है। हो सकता है कि ऊषा और चौबे में तनातनी चल रही हो लेकिन यह भी जानिए कि फुटबाल को हरी झंडी दिखाई तो कुछ अन्य खेल भी विवाद खड़ा कर सकते हैं। यूं भी ओलंपिक काउंसिल आफ एशिया और एएफसी की अनुमति के बिना काम नहीं बनने वाला। तो फिर आईओए के दो बड़े लड़ते हैं तो लड़ते रहें। लड़ाई तो लगभग दर्जन भर खेलों में भी चल रही है, जिनमें से कुछ कोर्ट कचहरी की शरण में पहुंच गए हैं।
बेशक, फुटबाल देश का प्रिय खेल है लेकिन फुटबाल को एशियाड में शामिल करने का ढोल पीटने वाला मीडिया यह भी जान ले कि यह 23 साल तक के खिलाड़ियों का आयोजन है, जिसमें तीन सीनियर खिलाड़ी शामिल किए जा सकते हैं।
देखा जाए तो सारे फसाद की जड़ हमारा चीफ कोच इगोर स्टेमेक है , जिसने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर भारतीय फुटबाल टीम को एशियाड में जगह दिलाने का नाटक रचा। उसके देखा देखी एआईएफएफ के बड़े भी जोश में आ गए। दरअसल कोच का कार्यकाल पूरा हो रहा है। वह एआईएफएफ की कृपादृष्टि चाहता है। कोच और उसके जी हुजूरों को हाल फिलहाल की कामयाबी बहुत बड़ी लगती है। शायद उन्हें पता नहीं कि जिस आयोजन में भाग लेने के लिए प्रधान मंत्री और गृहमंत्री से गुहार लगाई जा रही है, उसमें भारत 1951 और 1962 में विजयश्री का वरण कर चुका है। बाद के सालों में एआईएफएफ के नकारापन और गंदी राजनीति ने फुटबाल को बर्बाद कर डाला।
वैसे भी कल्याण खुद अच्छे फुटबालर रहे हैं और खेल के नियमों और दिशा निर्देशों से अवश्य वाकिफ होंगे। बेहतर होगा जिद्द छोड़ दें, जगहंसाई का डर है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |