यदि सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिल सकता है तो ध्यान चंद और विश्वनाथन आनंद को क्यों नहीं ? यह सवाल जब तब किया जाता रहा है। लेकिन शायद आनंद इसलिए देश का सबसे बड़ा सम्मान अर्जित नहीं कर पाए क्योंकि शतरंज ओलम्पिक खेल नहीं है या ये भी हो सकता है कि वह बेहद शांत, सौम्य और अनुशासित खिलाडी रहे हैं। शायद उनके नाम को लेकर देश के बड़े राजनेताओं और शतरंज फेडरेशन ने भी कभी आवाज नहीं उठाई और गंभीरता नहीं दिखाई। यह भी सम्भव है कि आनंद ने इधर उधर की गई सोचने और खेल के साथ साथ गुपचुप राजनीति करने का हुनर नहीं सीखा।
चलिए मान लिया कि देश कि सरकारों ने ध्यान चंद और बलबीर सीनियर जैसे महान खिलाडियों को सचिन से कमतर आँका या क्रिकेट की लोकप्रियता के चलते सचिन सबसे बड़ा सम्मान पा गए। लेकिन अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा के खेल ओलम्पिक में हैं और व्यक्तिगत प्रदर्शन के दम पर दोनों खिलाडी ओलम्पिक चैम्पियन बने हैं। खैर, आनंद, 52 साल के हो गए हैं और आज भी उनका दिल दिमाग वैसे ही काम करता है जैसे बीस तीस साल पहले बड़े बड़े चैम्पियनों को तारे दिखा रहे थे। उनकी गिनती आज भी दुनिया के टॉप दस चैम्पियनों में की जाती है जोकि पचास पार के खिलाडी के लिए बड़ी बात है।
पांच बार के विश्व चैम्पियन अंतराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फिडे) के उपाध्यक्ष हैं। तारीफ़ की बात यह है कि उन्हें यह पद खुद फिडे ने सम्मान के रूप में दिया है क्योंकि फिडे जानता है कि विश्वनाथन आनंद होने के मायने क्या हैं। एक साक्षात्कार में आनंद ने कहा कि अब वे दुनिया भर में शतरंज को फैला सकते हैं और देश की भावी पीढ़ी को इस खेल कि तरफ झुका सकते हैं, जोकि हमेशा से उनका सपना रहा है।
शतरंज जैसे खेल में सालों साल बादशाह बने रहना हंसी खेल नहीं है, जहाँ कि कदम कदम पर छोटे बड़े प्यादे लंगड़ी लगाने के लिए तैयार बैठे रहते हैं लेकिन आनंद ने कभी किसी की परवाह नहीं की और सिर्फ खेल पर ध्यान केंद्रित किया और भारतीय शतरंज के भगवान कहलाए। तारीफ़ की बात यह है कि भारत को शतरंज ओलम्पियाड की मेजबानी दिलाने में भी उनका बड़ा हाथ रहा है। ऐसा इसलिए सम्भव हो पाया क्योंकि फिडे की नजर में उनका सम्मान ठीक वैसा ही है जैसा कि हॉकी में ध्यान चंद और फ़ुटबाल में पेले को प्राप्त है।
यह न भूलें कि भारतीय क्रिकेट में सचिन का उदय तब हुआ जबकि गावस्कर और कपिल जैसे चैम्पियन उनके खेल को स्थापित कर चुके थे और क्रिकेट ने तेज रफ़्तार दौड़ना शुरू कर दिया था। लेकिन आनंद अकेले दम पर भारतीय शतरंज को शिखर तक ले गए और लम्बे समय तक चोटी पर जमे रहे। आनंद उन छह चैम्पियनों में शुमार हैं जिन्होंने फिडे विश्व चैम्पियनशिप में 2800 के अंक को पार किया और दुनियां भर में भारत का नाम रोशन किया। विश्व नंबर एक की पदवी को उन्होंने बार बार गौरवान्वित किया।
खेल जानकारों की मानें तो आनंद का प्रदर्शन किसी भी खेल में किसी भी भारतीय खिलाडी के व्यक्तिगत प्रदर्शन पर भारी रहा है। उन्हें अर्जुन पुरस्कार, पदम् श्री, पद्म विभूषण तक मिले लेकिन भारत रत्न क्यों नहीं बन पाए यह सवाल जस का तस खड़ा है? क्या किसी के पास इस सवाल का जवाब है ?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |