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‘बेहतर होगा सरकार और भारतीय ओलम्पिक संघ बेमतलब राष्ट्रीय खेलों के आयोजन का राग अलापने से पहले विभिन्न खेलों के राष्ट्रीय आयोजनों पर ध्यान दे’, एक पूर्व ओलम्पियन की यह टिप्पणी काबिले गौर है । एक अन्य पूर्व खिलाडी के अनुसार जो लोग स्कूल, कालेज के खेल आयोजित नहीं करा पाते, जिन्हें अपनी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के आयोजन की जानकारी नहीं उनके लिए इन खेलों का मतलब सिर्फ मौज मस्ती और लूट खसोट ही हो सकता है ।
27 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक गुजरात में आयोजित होने वाले 36वें राष्ट्रीय खेलों की तैयारी चरम पर है और गुजरात सरकार आईओए के साथ मिल कर इन खेलों को यादगार बनाने के लिए दृढ संकल्प है । आयोजक चाहते हैं कि देश के सभी नामी गिरामी खिलाडी इन खेलों में भाग लें और अपने जौहर दिखाएं । लेकिन देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जोकि राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के पक्ष में नहीं है और इस प्रकार के आयोजन को महज फिजूलखर्ची और पैसे की बर्बादी मानता है । आलोचकों के अनुसार इन खेलों में प्रमुख खिलाडियों की रूचि कदापि नहीं होती । उन्हें दबाव के चलते हामी भरनी पड़ती है ।
1940 में पहली बार बॉम्बे में पहले राष्ट्रीय खेलों का आयोजन किया गया था । तत्पश्चात अब तक मात्र 35बार खेल आयोजित किए गए । एक, दो, चार, छह साल के अंतराल के बाद खेल आयोजित किए जाते रहे । कोई कायदा कानून तय नहीं था इसलिए सरकारों ने अपने अनुसार खेलों के लिए हामी भरी और मनचाहा तो नकार भी दिया । पिछले खेल 2015 में केरल ने आयोजित किए और अब सात साल बाद गुजरात इन खेलों को आयोजित करने जा रहा है, जिनमें 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशों ने भाग लेने की पुष्टि की है । गुजरात से पहले गोवा, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और मेघालय ने भी दावे किए थे लेकिन उनका होमवर्क पूरा नहीं था |
भारतीय ओलम्पिक संघ और तमाम खेल संघ चाहते हैं कि गुजरात के खेलों में तमाम स्टार खिलाडी शिरकत करें । ओलम्पिक और राष्ट्रमंडल खेलों के पदक विजेताओं को भी भाग लेने के लिए कहा जा रहा है ताकि आयोजन अब तक के सारे रिकार्ड तोड़ दे । बेशक, मन मारकर सभी को भाग लेना पड़ेगा लेकिन इस आयोजन से देश के खेलों को क्या मिलेगा ?
कुछ नामी खिलाडियों के अनुसार ऐसे खेलों के आयोजन का फायदा आईओए , खेल संघों और सरकारी तंत्र से जुड़े कुछ अवसरवादियों के हित साधे जा सकते हैं लेकिन खेल और खिलाडियों को कोई फायदा नहीं मिलने वाला । इसलिए क्योंकि जो लोग देश के स्कूलों, कालेज -विश्वविद्यालयों के खेल आयोजित नहीं करा पाते , राष्ट्रीय चैम्पियनशिप यदा कदा ही करते हैं, उनसे ज्यादा उम्मीद व्यर्थ है । कुछ खेल पंडितों के अनुसार देश के स्कूली खेल गन्दी राजनीति और लूट का अखाड़ा बने हुए हैं और अधिकांश खेलों की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप भी यदा कदा ही होती है । अब तो ‘खेलो इंडिया’ भी मैदान मार चुका है , जिसके बैनर तले तमाम खेल हो रहे हैं । तो फिर राष्ट्रीय खेल क्यों और किसके लिए आयोजित किए जाते है, यह बात समझ से परे है।
36 खेल, 7000 खिलाड़ी-
36वें राष्ट्रीय खेलों का थीम है ”खेलों के जरिये राष्ट्रीय एकता ”। इनका आयोजन सात साल के अंतराल के बाद 29 सितम्बर से 12 अक्टूबर तक किया जा रहा है।
गुजरात के छह शहर- अहमदाबाद, गांधीनगर, सूरत, वड़ोदरा, राजकोट और भावनगर– इन खेलों की मेजबानी करेंगे। नयी दिल्ली ट्रैक साइक्लिंग इवेंट की अतिरिक्त मेजबानी करेगी।
28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों से 7000 एथलीट 36 खेलों में हिस्सा लेंगे जिसमें अधिकतर पारम्परिक ओलम्पिक खेल शामिल हैं। मलखम्ब और योगासन जैसे देशी खेल पहली बार राष्ट्रीय खेलों में शमिल किए गए हैं। कबड्डी, खोखो और योग जैसे विशुद्ध भारतीय खेल आकर्षण का केंद्र रहेंगे।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |