योगेश्वर दत्त का नाम आपने सुना होगा। छत्रसाल अखाड़े के सफलतम, बेहद शांत और सौम्य पहलवान को शायद ही किसी ने कभी गुस्से में देखा होगा। आमतौर पर विनम्र रहने वाले इस ओलंपिक पदक विजेता पहलवान के चेहरे से शराफत झलकती है। लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर एक इंटरव्यू के चलते योगेश्वर एक दूसरे ही रूप में नजर आए। एंकर द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब उन्होंने सवाल पूछ कर दिया । हालांकि उनका सवाल स्वभाव के विपरीत था लेकिन ऐसा था जिस पर देश में खिलाड़ियों को स्टार बनाने का दावा करने वालों को शर्म आ जाए। हालांकि उन्हें कभी शर्म आती नहीं है।
एंकर ने जब उनसे भारतीय खिलाड़ियों द्वारा ओलंपिक पदक जीतने पर सवाल किया और कहा कि पदक जीतने वाले खिलाड़ी स्टार बन गए हैं और रोज ही अखबार की सुर्खियों में रहते हैं। योगी ने तपाक से कहा ‘ आज किसी का भी नाम अखबार या मीडिया में कहीं नहीं है, आपने देखा हो तो बताएं’। उनका तात्पर्य यह था कि जब खिलाड़ी कोई बड़ा पदक जीतते हैं तो मीडिया उन पर कुर्बान हो जाता है। पूरे देश में खुशी मनाई जाती है लेकिन दो चार दिन बाद वही खिलाड़ी गुमनामी में खो जाता है। देश के बेहतरीन पहलवानों में शुमार योगी के गुस्से की वजह यह है कि देश के लिए पदक जीतने वालों को जल्दी ही भुला दिया जाता हैं। चार साल बाद जब अगला ओलंपिक दस्तक देता है तो पिछले रिकार्ड खोजे जाते हैं । यही कारण है कि अपने देश में चैंपियन खिलाड़ी यदा कदा ही पैदा होते हैं।
इस बारे में जब कुछ पूर्व खिलाड़ियों और कोचों से बात की गई तो अधिकांश ने माना कि योगी का गुस्सा जायज है। यही होता आ रहा है। उनके अनुसार मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा का नाम इसलिए सालों साल चलता रहा क्योंकि तब तक कोई अन्य खिलाड़ी उनकी ओलंपिक उपलब्धि तक नहीं पहुंच पाया था। लेकिन अब छुट पुट ओलंपिक पदक मिल रहे हैं लेकिन उन्हें देश की सरकारें , खेल संघ, खेल आका और अन्य अवसरवादी तब तक याद रखते हैं जब तक खिलाड़ियों की आड़ में उनके स्वार्थ साधे जाते हैं। पदक विजेताओं के साथ फोटो खिंचवाने और उनकी कामयाबी का श्रेय लेने वाले अवसरवादियों पर योगेश्वर ने सही निशाना साधा है।
ओलम्पिक और पैरालंपिक के पदक विजेताओं पर सरसरी नजर डालें तो बिना स्वर्ण के छह पदक जीतने वाले सात स्वर्ण सहित 29 पदक जीतने वालों पर बहुत भारी दिखाई दिए। भले ही दो चार दिन के लिए लेकिन उन्हें इस तरह पेश किया गया मानो 71 वें स्थान पर रहने वाले छह खिलाड़ियों ने जग जीत लिया हो, जबकि बड़ा करिश्मा पैरा खिलाड़ियों ने किया था। वापसी पर उनके स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर चंद परिजन और पैरालंपिक कमेटी के सदस्य ही थे। ऐसा क्यों? बेशक, योगी का गुस्सा और सवाल जायज है। आखिर इस देश में विजेता खिलाड़ियों को सम्मान देने के लिए झूठ और फरेब क्यों हो रहा है? क्यों उन्हें इस ओलंपिक से उस ओलंपिक तक और फिर सालों साल याद नहीं रखा जाता? बेशक, खिलाड़ियों की कामयाबी की आड़ में स्वार्थ साधने वाली व्यवस्था पर योगेश्वर का गुस्सा वाजिब है।
Rajendar Sajwan
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |