शायद ही किसी खेल के चलते दुनिया की रफ़्तार धीमी पड़ जाए या जन जीवन थम सा जाए लेकिन जब विश्व कप फुटबाल मुकाबले अपने चरम पर होते हैं तो फुटबाल से जुड़ा एक बड़ा वर्ग सिर्फ और सिर्फ फुटबाल की बात करना पसंद करता है । और फिर एक दौर ऐसा भी आता है जब आम फुटबाल प्रेमी फुटबाल खाता , पीता और सोता है, जैसा कि फिलहाल दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना में चल रहा है । भारत में ऐसा माहौल कभी कभार क्रिकेट में देखने को मिल सकता है लेकिन बाकी खेल फुटबाल की बराबरी नहीं कर सकते ।
इसमें दो राय नहीं कि हर खेल की अपनी गरिमा औरलोकप्रियता है । लेकिन भारतमें क्रिकेट के अलावा शायद ही कोई दूसरा खेल होगा जिसके चैम्पियनों को फुटबॉलरों की तरह सर माथे बैठाया जाता हो । सालों पहले हॉकी और आज के दौर में क्रिकेट खिलाडियों को राष्ट्र नायकों की तरह सम्मान दिया गया लेकिन दोनों ही खेल सिर्फ दस देशों तक सीमित हैं ।
क़तर विश्व कप के बाद और खासकर अर्जेंटीना की शानदार जीत को देखते हुए आम भारतीय भी फुटबाल के बारे में सोचने समझने लगा है| उसे पता है कि भारतीय फुटबाल का विश्व स्तर पर जरा भी मान सम्मान नहीं है फिरभी इस खेल के दीवानों की संख्या भारत में करोड़ों क्यों है ? क्यों लाखों भारतीय महंगी टिकट खरीद कर विश्व कप देखने जाते हैं और क्यों करोड़ों टीवी सेट से चिपके रहते हैं | ऐसे ही कुछ फुटबाल दीवाने चाहते हैं कि भारत सरकार को आगे बढ़ कर फुटबाल के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए और हो सके तो फुटबाल को राष्ट्रीय खेल घोषित कर देना चाहिए। यूं भी आजादी के 75 साल बाद भी हमारा कोई राष्ट्रीय खेल नहीं बन पाया है।
टीम खेलों में सिर्फ और सिर्फ फुटबाल ही ऐसा खेल है जिसे पूरी दुनिया में जाना पहचाना जाता है। तारीफ़ की बात यह है फीफा कप के विजेता अर्जेंटीना की जीत का जश्न पूरे भारत में भी मनाया गया तो फ़्रांस की हार का गम भी दुनिया भर के फुटबाल प्रेमियों ने महसूस किया । आम भारतीय फुटबाल प्रेमी यदि लियोनेल मेसी का दीवाना है तो वह क्लियन एमबापे का दर्द भी महसूस करता है । लेकिन वह भारतीय फुटबाल के बारे में कम ही जानता है या जानना ही नहीं चाहता ।उसे पता है कि भारत में फुटबाल की हालत बेहद खराब है।
दिल्ली , मुंबई, गोवा, कोलकाता, बंगलुरू ,चेन्नई, शिलोंग , इंफाल आदि शहरों के कुछ युवाओं ने क़तर विश्व कप के चलते कहा कि सरकार यदि फुटबाल को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दे तो इस खेल में भारत भी बड़ी ताकत बन सकता है । देश के करोड़ों युवा भले ही क्रिकेट का रोमांच उठाते हों लेकिन एक बड़ा वर्ग सिर्फ फुटबाल का दीवाना है और क्रिकेट को खेल की बजाय तमाशा भर मानता है । ऐसी सोच रखने वाले करोड़ों भारतीय क्रिकेट को मज़बूरी मानते हैं तो हॉकी ज्यादातर के दिल दिमा से उतर चुकी है । उन्हें दादा ध्यानचंद के दौर का पता नहीं लेकिन मेसी का जादू भाता है । उन्हें क्रिकेट की धमाचौकड़ी अखरने लगी है | शायद इसी लिए फुटबाल की गंभीरता और महानता के साथ जीना चाहते हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |