क्यों हॉकी से दूर हो रहे हैं उसके चाहने वाले?

Narinder Batra

डाक्टर नरेंद्र ध्रुव बत्रा आज विश्व हॉकी के जिस मुकाम पर हैं, उनसे पहले कोई भी भारतीय आस पास तक नहीं पहुँच पाया था। उनके आईओए और अंतर्राष्ट्रीय हॉकी के अध्यक्ष पद पर रहते भारतीय हॉकी ने वह सब हासिल किया है, जिसकी पिछले कई दशकों से प्रतीक्षा की जा रही थी। टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीमों के शानदार प्रदर्शन के लिए हॉकी इंडिया, खिलाडी और कोच साधुवाद के पात्र हैं लेकिन यह सब इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि पिछले कई सालों से हॉकी की बेहतरी के लिए हॉकी इंडिया प्रयासरत है जिसकी नींव डॉक्टर बत्रा ने रखी है।

इसमें दो राय नहीं कि पूर्व अध्यक्ष केपीएस गिल को अपदस्त करने के बाद डाक्टर बत्रा ने हॉकी के सुधार के लिए अनेक प्रयोग किए। हॉकी लीग और उड़ीसा सरकार के साथ गठबंधन ऐतिहासिक कदम कहे जा सकते हैं। फिरभी देश के अनेक खिलाडी, कोच और हॉकी प्रेमी हाल के बदलाव और हॉकी इंडिया के प्रयासों से पूरी तरह संतुष्ट और सहमत नहीं हैं। एक सर्वे से कुछ हॉकी इकाइयों, आयोजकों और हॉकी प्रेमियों कि नाराजगी सामने आई है।

हालाँकि देश के हॉकी प्रेमी ओलम्पिक में पदक मिलने और महिला खिलाडियों के शानदार प्रदर्शन के बाद यह मान रहे हैं कि सालों बाद ही सही, हमारे तथाकथित राष्ट्रीय खेल की वापसी हो रही है लेकिन सिर्फ और सिर्फ कुछ प्रदेशों में खेल का प्रचार प्रसार काफी नहीं है। उड़ीसा ने हॉकी को गोद लिया है तो इसका मतलब यह नहीं कि भारतीय हॉकी आयोजनों के गढ़ दिल्ली, पंजाब और कुछ अन्य प्रदेशों कि अनदेखी की जाए। इस संवाददाता ने कुछ समर्पित हॉकी प्रेमियों से बातचीत के बाद पाया कि दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम और ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम से हॉकी का पूरी तरह गायब होना नाराजगी का कारण है।

दिल्ली के हॉकी प्रेमी अपने सितारा खिलाडियों की एक झलक पाने के लिए तरस जाते हैं। पिछले कई सालों से उनके दर्शन नहीं हो रहे। संभवतया 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों के बाद से शिवाजी और नेशनल स्टेडियम अपने हॉकी सितारों की बाट जोह रहे हैं। अन्य प्रदेशों का भी यही हाल है। पता नहीं कारण क्या है लेकिन स्टेडियम अब सिर्फ जूनियर और सबजूनियर स्तर के आयोजनों के लिए ही उपलब्ध हो पाते हैं। नतीजन हॉकी प्रेमियों ने खेल से ही नाता तोड़ लिया है। जिन मैदानों में खेल कर भारतीय हॉकी ने ओलम्पिक और विश्व चैम्पियन पैदा किए उनमें छाई वीरानी चिंता का विषय बनी है।

यह सही है कि हॉकी को बड़ा और लम्बे समय तक का प्रायोजक मिल गया है, खिलाडियों पर देश की सरकार और अन्य सरकारें भी करोड़ों खर्च कर रही हैं। लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दें तो देश भर के हॉकी आयोजनों में दर्शकों की उपस्थिति नगण्य हो गई है। कारण, हमारे अंतर्राष्ट्रीय खिलाडी पूरे साल कैम्प में रहते हैं या विदेश दौरे करते हैं। उनकी एक झलक पाना भी दूभर हो गया है। अपने विभागों और राष्ट्रीय हॉकी चैम्पियनशिप में भी उनकी उपस्थिति जैसे थम गई है।

दूसरी तरफ हाल में आयोजित जूनियर वर्ल्ड कप और तत्पश्चात आयोजित एशियन चैम्पियंस ट्राफी के नतीजों से भारतीय हॉकी के प्रति आम भारतीय के विश्वास में कमी आई है। जो लोग टोक्यो के बाद अपने खिलाडियों और हॉकी इंडिया का गुणगान कर रहे थे उन्हें लगता है कि पेरिस ओलम्पिक से पहले कोई राय बनाना ठीक नहीं होगा। हॉकी प्रेमी डा.बत्रा से निवेदन कर रहे हैं कि हॉकी को पूरे देश का खेल बनाया जाए और खिलाडी देश भर में अपने चाहने वालों के सामने खेलें।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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