अपनी फुटबाल से क्यों खफा है,भारतीय मीडिया?

Why Indian media is annoyed with football

मीडिया की बेरुखी
भारतीय फुटबाल प्रेमियों को शिकायत है कि मीडिया फुटबाल की खबरों को नहीं छाप रहा। हाल ही में खेले गए संतोष ट्राफी मुकाबलों में देश के उभरते खिलाड़ियों ने जम कर पसीना बहाया लेकिन किसी की ख़बर नहीं ली गई। दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में खेले गए मैचों को किसी अखबार या टीवी चैनल ने कवर नहीं किया।

उधर शिवाजी स्टेडियम पर खेली जा रही जूनियर नेहरू हॉकी के मुक़ाबले भी जंगल में मोर नाचने जैसे रहे।चूंकि मीडिया ने नेहरू हॉकी, शास्त्री हॉकी और कई अन्य स्थापित आयोजनों की खबर लेना छोड़ दिया है, इसलिए खिलाड़ी, अधिकारी और खेल प्रेमी प्रचारमाध्यमों से बेहद खफ़ाहैँ।

देशभर के समाचार पत्रों पर नज़र डालें तो अखबार सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट की खबरों से पटे पड़े हैं। फिर चाहे क्रिकेट आईपीएल, टेस्ट, एकदिनी, रणजी ट्राफी या स्कूल स्तर की ही क्यों न हो। क्रिकेट की हर खबर हमारा मीडिया बड़े अदब के साथ छापता है, दिखाता है। लेकिन बाकी खेलों के नाम पर ओलंम्पिक, एशियाड, जैसे आयोजन ही मीडिया की समझ आते हैं।

दिल्ली साकर एसोशिएसन की देख रेख में आयोजित की जाने वाली लीग फुटबाल को किसी भी लोकल अखबार द्वारा कवर नहीं किया जा रहा। पूर्व फुटबॉलरों के अनुसार दिल्ली फुटबाल लीग दिल्ली और आस पास के प्रदेशों के खिलाड़ियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। उभरते खिलाड़ी इस आयोजन में भाग लेकर राट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने में सफल रहे, जिनमें भारतीय कप्तान सुनील क्षेत्री एक बड़ा नाम हैं। डीएसए के पूर्व सचिव नरेंद्र भाटिया, वरिष्ठ अधिकरी हेम चंद, मगन पटवाल और अन्य के अनुसार मीडिया की बेरुखी के चलते खेल और खिलाड़ियों का मनोबल टूट रहा है।

गढ़वाल हीरोज,
दिल्ली एफसी, उत्तराखंड, सुदेवा, दिल्ली यूनाइटेड, हिंदुस्तान एफसी , रॉयल रेजजर्स , तरुण संघा आदि टीमें लीग में भाग ले रही हैं। उभरते खिलाड़ियों का भविष्य दांव पर लगा है। उन्हें अपने रिकार्ड के लिए पेपर कटिंग की जरूरत है लेकिन कोई भी अखबार उनकी सुध नहीं ले रहा। इलेक्ट्रानिक मीडिया तो कभी इस ओर ध्यान देता नहीं।

सिर्फ हॉकी या फुटबाल ही नहीं , क्रिकेट के अलावा बाकी सभी स्थानीय खेल मीडिया से दूर हो रहे हैं। ऐसे में खेलों पर पैसा खर्च करने वाले और खेल अकादमियां एवम क्लब चलाने वालों केसामने बड़ी चुनौती आन खड़ी हुई है।

हैरानी वाली बात यह है कि हमारे अखबार यूरोप और लेटिन अमेरिका की फुटबाल की कोई खबर नहीं छोड़ना चाहते लेकिन दिल्ली और देश की फुटबाल गतिविधियां खोजे नहीं मिल पातीं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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