विंटर ओलिंपिक: सिर्फ खानापूरी की भागीदारी किस लिए?

winter olympics 2022

विंटर ओलंपिक्स का बिगुल बज चुका है। 84 देशों के खिलाडी बीजिंग में चल रहे विंटर ओल्य्म्पिक में भाग ले रहे हैं जिनमें भारत की भागीदारी ३१ साल के आरिफ खान क़र रहे हैं। सिर्फ एक भारतीय का भाग लेना कुछ अटपटा सा लगता है जिसके साथ पांच अन्य सपोर्ट स्टाफ के रूप में शामिल हैं। आरिफ ने दो स्पर्धाओं के लिए क्वालीफाई किया है। ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय हैं। वह स्लालोम और जायंट स्लालोम में भाग लेंगे। इन खेलों की अन्य प्रमुख स्पर्धाएं हैं, ल्यूज, फ्रीस्टाइल स्कीइंग, अल्पाइन स्कीइंग, शार्ट ट्रैक स्पीड स्केटिंग, स्केलेटन स्नो बोर्डिंग, बाबस्लेग और कर्लिंग, जिनका आयोजन बर्फ पर किया जाता है।

भारतीय खिलाडी १९६४ से विंटर ओलम्पिक में भाग ले रहे हैं, जिनमें पदक जीतने में कोई भी भारतीय खिलाडी सफल नहीं हो पाया है। वैसे भी भारतीय भागीदारी सिर्फ खानापूरी जैसी रही हैI अधिकांश अवसरों पर एक मात्र खिलाडी ही चुनौती पेश करता आया है लेकिन २००६, २०१० और २०१४ में तीन खेल प्रतियोगिताओं में चुनौती पेश की गई। २०१८ के खेलों में दो खिलाडियों जगदीश सिंह और शिव केशवन ने भाग लिया था।

जहाँ तक विंटर ओलम्पिक में भाग लेने वाले १५ प्रमुख खिलाडियों की बात है तो हिमाचल प्रदेश के मनाली शहर के शिवा केशवन का नाम सबसे पहले आता है जिसने छह ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया लेकिन पदक के करीब एक बार भी नहीं पहुँच पाए। इन खेलों के पारखी मानते हैं कि भारतीय बेहद प्रतिभाशाली खिलाडी रहे लेकिन उच्च स्तरीय ट्रेनिंग नहीं मिल पाने के कारण हर बार पदक से बहुत दूर ठिठक गए।

समर ओलम्पिक के २५ संस्करणों में भाग लेकर भारतीय खिलाडियों ने ३५ पदक जीते हैं जबकि विंटर खेलों में अभी ख खुलना बाकी है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपेक्षकृत गरम देश है और विंटर खेलों के लिए बुनियादी ढांचा विकसित नहीं हो पाया है। नतीजन भारतीय भागीदारी एक दो खिलाडियों तक सीमित रही है। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि सिर्फ भाग लेने और उपस्थिति दर्ज करने के लिए ही क्यों खेलें? यह न भूलें कि इन खेलों पर आम ओलम्पिक कि तुलना में कई गुना ज्यादा खर्च होता है, जोकि भारत जैसे गरीब देश के लिए बहुत महंगा पड़ता है।

खेल जानकारों और एक्सपर्ट्स कि राय में पिछले पचास सालों की भारतीय भागीदारी बेमतलब साबित होती आई है। सरकार का करोड़ों खर्च होता है और एक दो खिलाडियों के साथ गया बड़ा दल खाली हाथ लौट आता है। सच तो यह है कि नॉर्वे, जर्मनी, कनाडा, अमेरिका, नीदरलैंड, स्वीडन, कोरिया, स्विट्ज़लैंड, फ़्रांस, ब्रिटैन, हंगरी, ऑस्ट्रेलिआ, न्यूजीलैंड, जापान, इटली, रूस चीन आदि ठन्डे देशों से मुकाबला करना भारतीय खिलाडियों के बुते की बात नहीं है।

बार बार हो रही फजीहत को देखते हुए कुछ लोग यहाँ तक कहने लगे हैं कि या तो भारतीय खिलाडियों को सालों पहले ट्रेनिंग के लिए ठन्डे और चैम्पियन देशों में भेजा जाए या इन खेलों में भागीदारी पर पूरी तरह रोक लगा दी जाए। खिलाडियों और देश का नाम खराब करना कदापि ठीक नहीं है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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