भारतीय फुटबाल टीम एएफसी अंडर 20 एशियन कप के फाइनल राउंड में नहीं पहुँच पाई है । अर्थात इस आयु वर्ग के खिलाडियों को महाद्वीप की टॉप टीमों में शामिल नहीं किया जा सकता । उज्बेकिस्तान और ईराक से हारने के बाद भारत ने भले ही कुवैत को हराया लेकिन तीसरे स्थान के गणित में भारत हल्का पड़ गया । यह झटका इसलिए बड़ा माना जा रहा है क्योंकि हाल ही में भारतीय अंडर 17 महिला टीम अपनी मेजबानी में आयोजित वर्ल्ड कप में बुरी तरह परास्त हुई ।
कुछ पीछे चलें तो अंडर 17 पुरुष टीम और अंडर 19 महिला टीमों को भी अपने मैदान और अपने दर्शकों के सामने बुरी तरह पिटते देखा गया । अर्थात अपनी मेजबानी में भी हम निरंतर हारते आ रहे हैं । इसलिए चूँकि हमारी तैयारी पूरी नहीं होती । बेशक , ऐसा इसलिए होता रहा है क्योंकि एआईएफएफ और उसकी सहायक इकाइयों ने मेजबानी पाने का हरसम्भव प्रयास तो किया लेकिन टीम को तैयार करने की तरफ उनका ध्यान कभी भी नहीं रहा ।
पिछली पराजयों की बाद हमारे विदेशी कोच यह बहाना बनाते हुए चुपचाप बच निकले कि टीम को अभ्यास के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया या टीम को उनके पसंदीदा देश में ट्रेनिंग की लिए नहीं भेजा गया । इसे भारतीय फुटबाल का दुर्भाग्य कहेंगे कि हमने कभी भी अपने कोचों पर भरोसा नहीं किया या यह भी हो सकता है कि हमारे कोच भरोसे पर खरे नहीं उतर पाए । स्वर्गीय दास मुंशी ने जो परम्परा डाली थी पूर्व अध्यक्ष प्रफुल पटेल उनसे चार हाथ आगे निकल गए और जाते जाते दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की फुटबाल को गर्त में डाल गए ।
पटेल का कार्यकाल नवगठित फेडरेशन के लिए एक सबक हो सकता है , जोकि पिछली गलतियों से सीख कर आगे की योजना बना सकती है लेकिन तब तक किसी भी वर्ल्ड कप की मेजबानी का दावा ठीक नहीं जब तक तक हमारे खिलाडी पूरी तरह से तैयार न हों । मेजबानी के मायने सिर्फ यह नहीं कि देश का लाखों करोड़ों खर्च करें और नतीजे हर बार शर्मसार करने वाले आएं ।
जो विदेशी कोच भारतीय जूनियर खिलाड़ियों को तकनीकी रूप से कमजोर बता रहे हैं उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारे खिलाड़ी तकनीक सीखने की उम्र काफी पीछे छोड़ चुके हैं। 17 से बीस साल के लड़के लड़कियों को ढालना आसान नहीं होता।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |