पिछले चार दशकों से भारतीय फुटबाल की बदहाली के बारे में जब कभी सवाल किया जाता है तो विदेशी कोच , एआईएफएफ के बड़े और तथाकथित फुटबाल जानकर एक रटा रटाया डायलॉग झाड़ते हैं कि – ‘ भारतीय फुटबाल को ग्रास रूट स्तर पर ध्यान देने की जरूरत है। ‘ लेकिन इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता।
इसमें दो राय नहीं कि जब तक किसी खेल की बुनियाद मजबूत नहीं होगी, उसकी तरक्की संभव नहीं है। लेकिन देश को फुटबाल राष्ट्र बनाने का स्वांग रचने वालों से पूछा जा सकता है कि ग्रास रूट स्तर पर कौनसा बड़ा काम हो रहा है? सब जूनियर और जूनियर स्तर पर खिलाड़ियों के शिक्षण प्रशिक्षण पर कितना ध्यान दिया जा रहा है और स्कूल स्तर की फुटबाल को कहां तक बढ़ावा दिया जा रहा है?
भारतीय फुटबाल को लेकर बड़ी बड़ी बातें करने वालों और हवाई नारे लगाने वालों से पूछा जा सकता है कि सीनियर टीम के अलावा नीचे के स्तर पर कितना बढ़ावा दिया जा रहा है? कुछ आंकड़ों पर ध्यान दें तो सीनियर राष्ट्रीय टीम और उसके विदेशी कोचों पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं लेकिन निचले स्तर पर कहीं कोई सराहनीय काम नहीं हो रहा। जो विदेशी कोच सीनियर टीम के साथ जुड़े होते हैं वे भी जूनियर स्तर पर प्रोत्साहन की बात तो करते हैं लेकिन उन्हें भी शायद वास्तविकता पता नहीं है। सवाल यह पैदा होता है कि जूनियर खिलाड़ियों को सीधे सीधे विदेशी कोचों के हवाले क्यों नहीं किया जाता?
सालों पहले भारतीय खेल प्राधिकरण ने जूनियर खिलाड़ियों को प्रमोट करने का बीड़ा उठाया था । तत्पश्चात टाटा फुटबाल अकादमी ने कई अच्छे खिलाड़ी तैयार किए लेकिन कुछ एक सालों में इन प्रयासों पर भारतीय फुटबाल का भ्रष्टाचार हावी हो गया। रहीम के बाद हबीब जैसे कोच की मेहनत पर भी पानी फेर दिया गया। भले ही फुटबाल सिखाने के नाम पर कुछ एक दुकानें चल रही हैं लेकिन गंभीरता कहीं नजर नहीं आती। पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार इस सारे प्रकरण की दोषी एआईएफएफ है जिसकी दुकान विदेशी कोचों की आड़ में चल रही है। अपने कोचों को पूरी तरह फ्लाप और फेल घोषित कर दिया गया है। ले दे कर विदेशी कोच सीनियर स्तर पर भारतीय फुटबाल का कारोबार देख रहे हैं। लेकिन जूनियर की किसी को खबर नहीं है। सवाल यह पैदा होता है कि जब ग्रास रूट स्तर से खिलाड़ियों की खोज खबर होनी चाहिए तो शुरू से ही विदेशी कोचों की सेवाएं क्यों नहीं ली जाती ?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |