दिल्ली की फुटबाल में बाहरी खिलाडियों की तादात लगातार बढ़ रही है, जिनमें न सिर्फ अन्य राज्यों के खिलाडी भाग ले रहे हैं अपितु विदेशी खिलाडी भी लगभग सभी क्लबों में देखे जा सकते हैं । बेशक यह स्थानीय फुटबाल के लिए शुभ लक्षण है और निसंदेह दिल्ली की फुटबाल में सराहनीय बदलाव भी देखने को मिल रहा है । पिछले चार पांच सालों में ज्यादातर क्लब बाहरी खिलाडियों को अपनी टीम का हिस्सा बनाने में सफल रहे हैं,जिनमें महिला क्लब भी शामिल हैं । लेकिन बाहरी खिलाड़ियों की घुसपैठ को शक की नजर से देखने वाले भी बढ़ रहे हैं।
कुछ सप्ताह पूर्व खेली गई पहली प्रीमियर लीग का खिताब जीतने वाली वाटिका एफसी में अधिकांश खिलाडी दिल्ली और आस पास के प्रदेशों से हैं लेकिन महिला प्रीमियर लीग की विजेता हॉप्स एफसी की अधिकांश खिलाडी हरियाणा से हैं, जिनमें से कुछ एक भारतीय राष्ट्रीय टीम का हिस्सा भी हैं । गढ़वाल एफसी पुरुष और महिला दोनों ही वर्गों की उपविजेता है, जिसको इस मुकाम तक पहुंचाने में सिक्किम, मिजोरम ,उत्तराखंड, बंगाल, असम,हरियाणा, यूपी आदि प्रदेशों के खिलाडियों का बड़ा योगदान रहा है । शीर्ष टीमों में शामिल दिल्ली एफसी, सुदेवा एफसी, रॉयल रेंजर्स, रेंजर्स, फ्रेंड्स यूनाइटेड हिंदुस्तान एफसी, उत्तराखंड और सीनियर डिवीज़न के क्लबों के ज्यादातर खिलाडी दिल्ली से बाहर के हैं ।
क्यों रहस्य बने बंगाल के खिलाड़ी …
सिटी एफसी, अहबाब , शास्त्री, यंग मैन आदि के पुरुष एवं महिला खिलाड़ी ज्यादातर पश्चिम बंगाल और नार्थ ईस्ट के प्रदेशों से हैं, जोकि मीलों का सफर तय करदेश की राजधानी में खेलने आते हैं । हालाँकि बंगाल के खिलाडियों से बने सजे क्लब पुरुष वर्ग में बड़ी सफलता अर्जित नहीं कर पाए हैं लेकिन महिला लीग में अहबाब एफसी ने ख़िताब जीत कर नार्थ ईस्ट की खिलाडियों की श्रेष्ठता के दर्शन कराए हैं| फुटबाल जानकारों की मानें तो बंगाल के खिलाडी दिल्ली लीग में इसलिए कम सफल हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर ‘खेप’ से जुड़े हैं, जोकि छोटे मैदानों के एकदिनी इनामी आयोजनों में भाग लेते हैं और ठीक ठाक पैसा कमा लेते हैं । लेकिन कुछ क्लबों और खिलाड़ियों पर उंगली उठ रही है। उन पर सट्टेबाजी और मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं।
अफ्रीकी खिलाडियों की बहुतायत :
कुछ क्लब अधिकारीयों के अनुसार खेप फुटबाल में सबसे ज्यादा पैसा अफ्रीकी खिलाडी कमा रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर नाइजीरिया से हैं । इनमें से अनेक खिलाडी दिल्ली के क्लबों की जीत में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं । आम बांग्ला एवं अन्य खिलाडियों की तुलना में अफ्रीकी खिलाडी इसलिए ज्यादा असरदार हैं क्योंकि दमखम और कदकाठी के मामले में स्थानीय खिलाडियों पर भारी पड़ते हैं । दिल्ली एफसी, वाटिका, रॉयल रेंजर्, गढ़वाल और कई अन्य क्लबों के अफ्रीकी खिलाडी अपनी टीमों के स्टार आंके जाते हैं । लेकिन कुछ एक पर शक की सुई लटकी है।
बेशक, बाहरी खिलाडियों की भागीदारी से दिल्ली की फुटबाल को बड़ी पहचान मिली है और देश की फुटबाल में दिल्ली का कद ऊँचा हुआ है। लेकिन तारीफ़ के काबिल वे क्लब अधिकारी हैं जोकि बाहरी खिलाडियों को अपने दम पर दिल्ली के खेल मैदानों पर उतार रहे हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |