भागीरथ प्रयासों से जीते पदक गंगा में क्यों बहाते हैं ?

Why does throw medals in the Ganges the won by efforts

देश के नामी पहलवानों ने अपने जीते गए पदकों को गंगा में विसर्जित करने का फैसला टाल कर देश के गणमान्य शासकों को सोचने समझने और गिरेबां में झाँकने का एक और मौका दिया है । हालाँकि पहलवान अगले चार पांच दिन तक के लिए मान गए हैं लेकिन यदि कोई बीच का रास्ता नहीं निकलता तो शायद एक बार फिर उन्हें गंगा मय्या की राह पकड़नी होगी । कल्पना कीजिए यदि पहलवान सचमुच अपने पदक बहा देते हैं तो देश का क्या घिस जाता ? शायद कुछ भी नहीं , क्योंकि भारतीय कुश्ती के सबसे बड़े पहलवान ब्रज भूषण शरण सिंह ने तो उनके ओलम्पिक पदक की कीमत 15 रूपए लगाई है।

एक पूर्व ओलम्पियन के अनुसार क्योंकि ब्रज भूषण भी खुद को पहलवान बताते हैं तो शायद उनके द्वारा जीते पदक की कीमत 15 रूपए रही होगी लेकिन बजरंग , साक्षी , विनेश , और संगीता के
पदकों का मूल्यांकन उनके बूते की बात नहीं है । एक पूर्व राष्ट्रीय कोच कहता है कि उसने जीवन भर पहलवानों को एक एक अंक और एक बाउट जीतने के लिए खून पसीना बहाते देखा है । दस बीस साल के गहन अभ्यास , घर परिवार के सहयोग , समर्पण और गुरुजनों के आशीर्वाद के बाद ही कोई भाग्यशाली पहलवान राष्ट्रीय और विश्व चैम्पियन बन पाता है । ओलम्पिक पदक जीतने के लिए उसने दस-बीस साल तक कितना परिश्रम किया , उस पर देश ने कितना खर्च किया और कितने लोगों की मेहनत से वह ऐसा कर पाया इस सबका हिसाब नहीं लगाया जा सकता ।

शायद ब्रज भूषण ने तैश में आकर ओलम्पिक पदक को 15 रुपए का बता दिया और अब कुछ इसी प्रकार की गलती पहलवान भी करने जा रहे हैं । यदि उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई और अपने पुरखों के आशीर्वाद को गंगा में बहा दिया तो आने वाली पीढ़ियां उन्हें कभी माफ़ नहीं करेंगी । हालाँकि पदक बहा देने से उनके सर का ताज नहीं छिन जाएगा । उनके नाम और सम्मान के साथ जुड़े ओलम्पिक पदक विजेता , विश्व विजेता , एशियन चैम्पियन , कॉमनवेल्थ चैम्पियन और राष्ट्रीय चैम्पियन जैसे खिताब और खेल रत्न , पद्म श्री , अर्जुन अवार्ड जैसे राष्ट्रीय सम्मान हमेशा उन्हें महान बनाएँगे । देश के भावी चैम्पियन उनका अनुसरण करते रहेंगे और यदि ब्रज भूषण खलनायक साबित हुए तो उन्हें कुश्ती कभी माफ़ नहीं करेगी । उन्हें भी माफ़ी नहीं मिलेगी जोकि खिलाडियों की कामयाबी का रसपान तो करते हैं लेकिन ब्रज भूषण जैसों से खौफ खाते हैं ।

एक पूर्व पदक विजेटा के अनुसार पदक लौटाने और बहाने की हुंकार भरने वाले पहलवानों को यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसा करने से बेटी बचाने का ढोंग रचने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । हो सकता है ऐसा करने के बाद पहलवानों पर ही उलटे कोई मुकदमा दर्ज़ कर दिया जाए , जैसे कि उन पर रातों रात एफआईआर दर्ज की गई थी ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *