कैसे एक ओलम्पिक पदक विजेता क्रिकेटर के आगे बौना नज़र आता है!

Why cricket is first priority

टोक्यो ओलम्पिक निपटने के बाद पदक विजेता खिलाड़ियों का स्वागत सत्कार और उन्हें लाखों करोड़ों बाँटने के बाद अब ओलम्पिक खेलों में ज़्यादा कुछ देखने समझने के लिए नहीं बचा है। आईपीएल के साथ अब एक बार फिर से क्रिकेट का धूम धड़ाका शुरू हो गया है। हालाँकि ओलम्पिक की खुमारी अभी कुछ और दिन रहने वाली है, क्योंकि इस बार भारतीय खिलाड़ियों ने बड़ा हाथ मारा है। ख़ासकर दिव्यांग खिलाड़ियों ने भारत का ओलम्पिक कद बढ़ा दिया है। लेकिन सच यह है कि ओलम्पिक खेल हर चार साल बाद ही चर्चा में आते हैं जबकि भारतीय क्रिकेट साल में पूरे तीन सौ पैंसठ दिन खेली खाई जाती है।

यह सही है कि ओलम्पिक में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को सरकार, राज्य सरकारों और औद्योगिक घरानों ने माला माल कर दिया है। खिलाड़ियों को दो से छह करोड़ रुपए, मकान, प्लाट, गाड़ियाँ और भी काफ़ी कुछ मिला है। लेकिन इतना तो आईपीएल खेलने वाला एक अदना सा क्रिकेटर बिना कुछ करे धरे कमा लेता है। जिस क्रिकेटर को कोई जानता तक नहीं, वह भी आईपीएल की बोली में ओलम्पिक चैम्पियन से भी ज़्यादा कमा लेता है। अगर स्टार खिलाड़ी है तो उसे दस बीस करोड़ भी मिल जाते हैं। फिर चाहे वह फ्लाप ही क्यों ना रहे। एक झटके में वह इतना पा जाता है जितना आम आदमी अपने पूरे जीवन भर में ईमानदारी की कमाई से नहीं जोड़ सकता। यह उन लोगों को जवाब है जोकि अक्सर पूछते हैं कि देश के बच्चे और युवा सिर्फ़ क्रिकेटर क्यों बनना चाहते हैं।

तारीफ की बात यह है कि करोड़ों पाने वाले कई क्रिकेटर आईपीएल से शुरुआत करते हैं और इसी प्लेटफार्म पर उनके करियर का समापन भी हो जाता है। उन्हें इस बात का कम ही मलाल रहता है कि देश के लिए नहीं खेल पाए, आईपीएल खेल गए, करोड़ों मिल गए और मनोकामना पूरी हो गई। लेकिन बाकी खेलों के साथ ऐसा नही है। हॉकी, फुटबाल, कुश्ती, कबड्डी, एथलेटिक, मुक्केबाज़ी बैडमिंटन और तमाम ओलम्पिक खेलों से जुड़े खिलाड़ी की पहचान तब ही है जब वह राष्ट्रीय कलर पा जाता है। उसके बाद ही उसके लिए पेशेवर लीग के दरवाजे खुल पाते हैं। जब तक कोई खिलाड़ी एशियाड या ओलम्पिक में पदक नहीं जीत लेता उसे कोई जानता तक नहीं है। विश्वास ना हो तो नीरज, अभिनव, सुशील, योगी और बिजेंद्र से पूछ कर देख लें। सिंधु, मैरिकाम, सायना, मीरा और लोवलीना की असल पहचान भी ओलम्पिक पदक से है।

भले ही आज भारतीय खिलाड़ियों को सर माथे बैठाया जा रहा है, उन्हें लाखों करोड़ों बाँटे जा रहे हैं लेकिन उन्हें कोई नहीं पूछ रहा जोकि खाली हाथ लौटे हैं। लेकिन क्रिकेट में ऐसा नहीं है। किसी भी फारमेट का कोई वर्ल्ड कप जीतने पर खिलाड़ी माला माल हो जाते हैं। उन्हें प्रति टेस्ट मैच, वन डे और टी20 का प्रतिदिन के हिसाब से जेब खर्ची के रूप में सम्मान राशि मिलती है, जोकि हज़ारों-लाखों तक पहुँचती है।

हाल ही में भारतीय क्रिकेट बोर्ड के एक फ़ैसले ने ओलम्पिक खेलों के कर्णधारों पर करारा तमाचा जड़ा है। कोविड प्रभावित खिलाड़ियों और इकाइयों को लाखों की सहायात दी जा रही है तो 40 से अधिक रणजी खेलने वाले खिलाड़ियों की मैच फीस 60 हज़ार प्रतिदिन, अर्थात लगभग ढाई लाख प्रति मैच कर दी गई है। इसी प्रकार छोटे आयुवर्ग में खेलने वाले लड़के लड़कियों को दस से तीस हज़ार प्रतिदिन दिए जाने का निर्णय लिया गया है। बाकी भारतीय खेलों में ज़्यादातर खिलाड़ी थर्ड क्लास यात्रा और थर्ड क्लास सुविधाओं में खेल रहे हैं। भत्ते के नाम पर उन्हें सौ दो सौ रुपए रोज के हिसाब से मिल पाते हैं। फिर कैसे मान लें कि ओलंम्पिक खेल तरक्की कर रहे हैं। हां, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ बेहतर स्थिति हो सकती है लेकिन क्रिकेट की बात ही कुछ और है। जो एक बार आईपीएल खेल गया, उसका जीवन सफल हो जाता है। किसी भी फॉरमेट में टीम इंडिया का हिस्सा बन गया तो कहने ही क्या!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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