क्रिकेट का मातम भी बाकी खेलों पर भारी

Why cricket is different

‘दो मैच हारना कोई बड़ी बात नहीं है,’ एशिया कप से बाहर हुई भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा की इस प्रतिक्रिया से बहुत से क्रिकेट प्रेमी नाराज हो सकते हैं और उन्हें बुरा भला भी कहा जा रहा होगा। लेकिन यह न भूलें कि श्री लंका और पाकिस्तान जैसी टीमों से हारना उस समय गंभीर मसला है जबकि देश अपनी क्रिकेट टीम से वर्ल्ड कप जीतने की अपेक्षा कर रहा है।

हार जीत तब नाक का सवाल बन जाती है जबकि मुकाबला पाकिस्तान से हो। भले ही टीम इंडिया बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान से पिट जाए लेकिन पाकिस्तान से हारने पर ही हमें हार का असल अहसास होता है । ठीक इसी प्रकार जब पाकिस्तान से जीत जाते हैं तो यह अहसास वर्ल्ड कप जीत लेने से भी ज्यादा खुशगंवार होता है।

लेकिन इस प्रकार का पागलपन सिर्फ क्रिकेट में ही क्यों देखने को मिलता है? हॉकी, फुटबाल और कुछ अन्य खेलों में भी भारत पाक भिड़ंत से उन्माद और विस्फोट जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। लेकिन बाकी खेलों में इस प्रकार का रोना पीटना ज्यादा देर देखने को नहीं मिलता। उदाहरणके लिए उस समय जबकि क्रिकेट में हुई हार पर तरह तरह की बयान बाजी और बहानेबाजी अपने चरम पर थी, भारतीय फुटबाल टीम की नेपाली अंडर 17 टीम के हाथों हुई हार हवा में तैर कर चुपचाप निकल गई। किसी ने भी कोई सवाल जवाब नहीं किया। ऐसा क्यों? शायद इसलिए क्योंकि भारतीय फुटबाल की कोई हैसियत नहीं है।

भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीमें जापान, कोरिया जैसी टीमों से पिट जाएं तो किसी भी भारतीय हॉकी प्रेमी के पेट में मरोड़े नहीं पड़ते। लेकिन पाकिस्तान से हारना या पाकिस्तान की टीम का भारत से हारना बड़ा गुनाह समझ लिया जाता है।

फुटबाल में हम अफगानिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से हार जाएं तो चलेगा लेकिन क्रिकेट में पाकिस्तान से हारने पर बड़ा गुनाह हो जाता है। इसलिए क्योंकि यह खेल दोनों देशों में सर्वाधिक लोकप्रिय है। पाकिस्तान दो बार ओलंम्पिक हॉकी के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाया तो उसके हॉकी प्रेमियों ने सड़क पर हाकी स्टिक नहीं चलाई और ना ही कोई स्टिक जलाई।

क्रिकेट टीमों की हार पर दोनों देशों में समीक्षा चल रही है। पाकिस्तान को इसबात का संतोष है कि उसने भारत को हरा कर फाइनल खेला । लेकिन भारतीय क्रिकेट में हड़कंप मचा है। टीम प्रबंधन और खिलाड़ी कह रहे हैं कि हार जीत खेल का हिस्सा है तो कुछ क्रिकेट समीक्षक चयनकर्ताओं और सीनियर खिलाड़ियों को कोस रहे है। खिलाड़ियों पर मनमानी के आरोप लग रहे हैं तो यह भी कहा जा रहा है कि चयन में खामियां हैं। लेकिन बाकी खेलों की हार को ज्यादा तबज्जो क्यों नहीं दी जाती?

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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