स्थानीय खिलाड़ियों के हितों को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन ने जिला और राज्यस्तर के आयोजनों में विदेशी खिलाड़ियों की भागीदारी पर प्रतिबंध लगा दिया है , अर्थात अब विभिन्न राष्ट्रीय आयोजनों में विदेशी खिलाड़ी नजर नहीं आएंगे। । इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर अलग अलग तरह से प्रतिक्रिया हो रही है। एक बड़ा वर्ग मानता है कि एआईएफएफ ने स्थानीय खिलाड़ियों के हित में निर्णय लिया है। दूसरी तरफ ऐसे भी हैं जिन्हें लगता है कि कमसे कम दो विदेशी खिलाड़ियों को क्लब में जगह दी जाती तो बेहतर रहेगा, क्योंकि अफ्रीका और अन्य एशियाई देशों के खिलाड़ी आम भारतीय खिलाड़ियों से बेहतर तो हैं ही , उनकी उपस्थिति उभरते खिलाड़ियों में ऊर्जा का संचालन भी करती है।
जो फुटबाल जानकार फेडरेशन के फैसले से खुश हैं और जिन्हें लगता है कि विदेशी खिलाड़ी स्थानीय खिलाड़ियों की जगह खा जाते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि देशभर में जहां विदेशी और खासकर अफ्रीकी खिलाड़ी खेलते हैं फुटबाल प्रेमी उनका खेल देखने बड़ी संख्या में आते हैं। वैसे भी अधिकांश राज्य इकाइयों में स्थानीय खिलाड़ियों की तादात लगातार घट रही है, क्योंकि खेल की आड़ में ऐसा खेला चल रहा है ,जिसके चलते फुटबाल शक के घेरे में है।
कोलकाता, दिल्ली, महाराष्ट्र, गोवा, पंजाब कर्नाटक आदि प्रदेशों के लीग आयोजनों और ओपन टूर्नामेंट में विदेशी छात्र खेलते आए हैं । उनकी मौजूदगी से भारतीय खिलाड़ियों को बेहतर दमखम और तकनीक वाले खिलाड़ियों के विरुद्ध खेलने का मौका मिलता है। दिल्ली फुटबाल की प्रीमियर लीग और सीनियर डिवीजन लीग में खेल का स्तर इसलिए बेहतर था क्योंकि अधिकांश टीमों के पास एक दो अश्वेत खिलाड़ी थे गोल जमाने की उनकी दक्षता देखने लायक थी। अब चूंकि उन खिलाड़ियों के लिए दरवाजे बंद हो गए हैं, इसलिए कौशल और दम खम वाला खेल शायद ही देखने को मिले।
आईएसएल और आई लीग में खेलने वाले बूढ़े, जर्जर और थके हारे विदेशियों को गले लगाने वाली एआईएफएफ का फैसला आम भारतीय फुटबाल प्रेमियों को रास नहीं आ रहा। कई राज्यों में विरोध भी शुरू हो गया है। यह ना भूलें कि फुटबाल का खेल सीधे सीधे खिलाड़ियों और उनके चाहने वालों से जुड़ा है। आईएसएल और आई लीग के मैचों में स्टेडियम इसलिए खाली रहते हैं क्योंकि भारतीय फुटबाल का स्तर बेहद खराब है। ऐसे में देश के एकमात्र जाने पहचाने खिलाड़ी सुनील क्षेत्री को दर्शकों से स्टेडियम में आने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है, हाथ जोड़ने पड़ते हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |