सुनील छेत्री के बाद कौन? अब यह सवाल भारतीय फुटबॉल की सर्वोच्च प्राथमिकता बन गया है। उस फुटबॉल की जो कि दिन पर दिन और साल दर साल आगे बढ़ने की बजाय पीछे लुढ़क रही है। अब देखना यह होगा कि हमें कब तक सुनील छेत्री का विकल्प मिल जाएगा। हालांकि कुछ खिलाड़ी हैं जो सुनील के मैदान पर रहते हल्की-फुल्की पहचान बनाने में सफल रहे हैं लेकिन ज्यादातर उस उम्र को पार कर चुके हैं जब खिलाड़ी का सीखने-पढ़ने और मैदान पर छा जाने का उत्साह सातवें आसमान पर होता है। फिर भी कुछ प्रतिभावान खिलाड़ियों की चर्चा की जा सकती है।
जहां तक सुनील की बात है तो उसके अंदर का चैम्पियन 13-14 साल की उम्र में उछाल मारने लगा था और 17-18 साल तक पहुंचते –पहुंचते उसने राष्ट्रीय स्तर पर छाप छोड़ दी थी । उसके बाद क्या कुछ किया, कितने रिकॉर्ड तोड़े और कब-कब भारतीय फुटबॉल की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, यह जगजाहिर है।
सुनील के मैदान में रहते जो खिलाड़ी छाप छोड़ने में सफल रहे उनमें कुछ एक की प्रतिभा को संतोष ट्रॉफी, आई-लीग और आईएसएल में देखा गया है। मुम्बई सिटी एफसी के लेफ्ट विंग में सेवाएं देने वाला 22 वर्षीय विक्रम प्रताप सिंह 23 मैच खेलकर आठ गोल ही दाग पाया है लेकिन उसे प्रतिभावान खिलाड़ियों की शीर्ष कतार में शामिल किया जा सकता है। कद-काठी में वह सुनील से इक्कीस नजर आता है। 24 वर्षीय रहीम अली को सुनील के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है, जो कि सुनील की तरह फुर्तीला है और गोल जमाने की कलाकारी में माहिर है। चेन्नइयन एफसी का वह भरोसेमंद खिलाड़ी है।
बेंगलुरू एफसी का 22 वर्षीय शिव शक्ति नारायण गोल करने के मौके खोजता है और इस कला में सुनील जैसा है। हालांकि उसे अभी खुद को साबित करना है। मोहन बागान क्लब का 28 वर्षीय मनवीर सिंह गोल करने की कलाकारी के लिए जाना जाता है। वह सुनील का उत्तराधिकारी भले ही ना हो लेकिन उसके खाली स्थान की क्षणिक भरपाई कर सकता है, क्योंकि उम्र उसके साथ नहीं है।
लाल्लियानजुआला छांगटे भरोसे के खिलाड़ियों में अव्वल है। वह 26 का है और भरोसे पर खरा उतर चुका है, आईएसएल में वह गोलों की झड़ी लगा रहा है और सुनील के खाली स्थान को कुछ हद तक भर सकता है।
लेकिन भारतीय फुटबॉल को सुनील का क्षणिक विकल्प नहीं चाहिए। जो भी खिलाड़ी उसके आस-पास है उनकी उम्र बढ़ रही है और लंबे समय तक राष्ट्रीय टीम को सेवाएं नहीं दे सकते हैं। यदि हमें दूसरा सुनील चाहिए तो फिर से 15-16 साल की प्रतिभा को तलाशना होगा, जो अगले डेढ़-दो दशक तक देश की फुटबॉल को गौरवान्वित कर सके।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |