पिछले कुछ महीनों में दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) की गतिविधियां बढ़ी हैं। स्कूल, कॉलेज और क्लब स्तर के आयोजनों में राजधानी के युवा फुटबॉलरों को अधिकाधिक खेलने के मौके मिल रहे हैं। लेकिन देश की राजधानी की फुटबॉल को संचालित करने वाली संस्था दिल्ली सॉकर एसोसिएशन के पास अपना कोई ग्राउंड नहीं है, जहां फुटबॉल की गतिविधियां और स्थानीय लीग मुकाबले निरंतरता के साथ और बेरोक-टोक आयोजित किए जा सकें। नतीजन कभी जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम की शरण लेनी पड़ती है तो कभी डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम के लिए एमसीडी की खुशामद करनी पड़ती हैं।
अम्बेडकर स्टेडियम में डेंटिंग-पेंटिंग का काम चल रहा है और इसका मैदान डीएसए की पहुंच से बाहर हो सकता है। नेहरू स्टेडियम का प्रैक्टिस मैदान उपलब्ध तो है लेकिन मुख्य मैदान आई-लीग मुकाबलों के लिए सुरक्षित कर दिया गया है। फिलहाल, पूर्वी विनोद नगर स्थित दिल्ली सरकार का दोयम दर्जे का मैदान फुटबॉल डीएसए की लाज बचा रहा है।
सीधा सा मतलब है कि देश की राजधानी की फुटबॉल गतिविधियों को संचालित करने के लिए डीएसए को इधर-उधर भटकना पड़ता है। यह सिलसिला पिछले छह-सात दशकों से चल रहा है। चूंकि डीएसए का अपना कोई ठौर-ठिकाना नहीं है इसलिए बड़े आयोजनों के लिए अन्य विभागों का मुंह ताकना पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि अम्बेडकर स्टेडियम से सटा फिरोजशाह कोटला ग्राउंड भी कभी अम्बेडकर स्टेडियम जैसी हालत में था। आज उस पर स्थानीय क्रिकेट लीग से लेकर रणजी ट्रॉफी , आईपीएल, वनडे, टेस्ट क्रिकेट और विश्व कप जैसे तमाम छोटे-बड़े आयोजन होते हैं। अर्थात् दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) ने तमाम तिकड़म लगाकर मैदान कब्जा करके उसे विश्व स्तरीय बना लिया जबकि डीएसए के भ्रष्ट और अवसरवादी स्थानीय फुटबॉल को लूटने में लगे रहे।
आज डीएसए की हालत यह है कि उसकी सीनियर डिवीजन लीग पूर्वी विनोद नगर स्थित दिल्ली सरकार के खस्ताहाल फुटबॉल मैदान पर खेली जा रही है जो कि किसी भी मायने में स्तरीय नहीं है। ऊंचा-नीचा, गड्ढों से भरपूर और धूल-मिट्टी से पटा मैदान कई खिलाड़ियों को चोटिल कर चुका है। स्थानीय टीमों की मजबूरी है कि उन्हें बेहद घटिया मैदान पर चालीस बयालीस डिग्री की गर्मी के बीच खेलना पड़ रहा है। शायद डीएसए किसी बड़ी दुर्घटना के इंतजार में है। शर्म की बात यह है कि देश की राजधानी के पास किराये का कोई स्तरीय मैदान भी नहीं है। फिर भला फुटबॉल कहां खेलें?
दिल्ली जैसा हाल देश के अन्य राज्यों का भी है। राज्य फुटबाल इकाइयों के पास मैदान नहीं है । फिर भला कैसे फुटबाल तरक्की कर सकती है?
Rajendar Sajwan
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |