राजेंद्र सजवान
केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया को पदभार संभाले कुछ सप्ताह हुए हैं लेकिन वह भी बखूबी जान गए हैं कि भारतीय खेलों का बड़ा टारगेट 2047 तक सुपर पॉवर बनने का है। 19 जुलाई को उनका सामना देश के जाने-माने खेल पत्रकारों और खेलों को बनाने-बिगाड़ने वाले फेडरेशन अधिकारियों, कोचों और प्रशासकों से हुआ। अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) द्वारा आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में घरेलू फुटबॉल के स्टार खिलाड़ियों, आयोजकों, राज्य ईकाइयों, रेफरियों आदि को सम्मानित किया गया। दिल्ली खेल पत्रकार संघ (डीएसजेए) द्वारा भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के साथ मिलकर पेरिस ओलम्पिक के लिए भारत की तैयारियों पर मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित सेमिनार में खेल मंत्री ने जोर-शोर से उपस्थिति दर्ज की। दोनों कार्यक्रमों में उन्होंने अपनी सरकार के प्रयासों की सराहना की और कहा कि वे सिर्फ भाषण देने और मजमा लगाने के लिए नहीं आए हैं। उनकी सरकार भारतीय खेलों को शीर्ष पर देखना चाहती है और मोदी जी के नेतृत्व में देश और खेल तेजी से प्रगति कर रहा है और आगे बढ़ रहा है। पेरिस ओलम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों से बहुत उम्मीद है।
बेशक, खेल मंत्री ऊर्जावान हैं और उनके नेतृत्व में देश के खेल अधिकाधिक प्रगति करेंगे और पेरिस ओलम्पिक में पदकों की झड़ी लगाकर हमारे खिलाड़ी देश का गौरव बढ़ाएंगे लेकिन फुटबॉल फेडरेशन द्वारा आयोजित बेमौसम अवार्ड समारोह को लेकर शायद उन्हें पूरी जानकारी नहीं दी गई। उन्हें यह नहीं बताया गया कि भारत विश्व फुटबॉल हंसी का पात्र बन कर रह गया है। दो एशियाड जीतने वाली और ओलम्पिक खेलों में शानदार प्रदर्शन करने वाली भारतीय फुटबॉल की हालत यह है कि वो एशिया में 22वें और विश्व रैंकिंग में 124वें स्थान पर पहुंच गई है।
उस समय जब देश ओलम्पिक तैयारियों में जुटा है, एआईएफएफ के अवार्ड समारोह के मायने कुछ-कुछ समझ आते हैं। संभवतया भारतीय फुटबॉल के प्रथम पुरुष कल्याण चौबे अपनी ताकत दिखाने की नीयत रखते हैं। यही कारण है कि उन्होंने खेल मंत्री के साथ पूर्व खेल मंत्री किरण रिजिजू, भारतीय ओलम्पिक समिति, भारतीय खेल संघों, खेल मंत्रालय और साई के वरिष्ठ अधिकारियों को आमंत्रित किया और उनके हाथों पुरस्कार वितरण समारोह संपन्न हुआ। हैरानी वाली बात यह है कि किसी ने भी एआईएफएफ मुखिया से यह नहीं पूछा कि भारतीय फुटबॉल दिन पर दिन क्यों बर्बाद हो रही है और क्यों उनकी फेडरेशन में गुटबाजी का खेल चल रहा है। हां, किरण रिजिजू ने इतना जरूर कहा कि 1950-60 में भारतीय फुटबॉल का बड़ा नाम था लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रही। दो बड़े मंत्रियों, आईओए और खेल संघों के बड़ों और साई के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति देखकर कुछ पत्रकार और पूर्व खिलाड़ी यह कहते पाए गए कि भारतीय फुटबॉल से ध्यान हटाने के लिए यह सब तामझाम जोड़ा गया है।
दिल्ली खाली हाथ?
अवार्ड नाइट में लालिंजुआला छांगटे और इंदुमती को क्रमश: पुरुष एवं महिला वर्ग का सर्वश्रेष्ठ भारतीय फुटबॉलर आंका गया। श्रेष्ठ कोच का सम्मान जमशेदपुर एफसी के कोच खालिद जमील और शुक्ला दत्ता को मिला। डेविड लाललाम सांगा और नेहा क्रमश: साल के उभरते पुरुष एवं महिला खिलाड़ी घोषित किए गए। रामचंद्रन वेंकटरमन और उज्जवल हलदर क्रमश: श्रेष्ठ रेफरी व सहायक रेफरी आंके गए। ग्रासरूट आयोजनों, महिला फुटबॉल को बढ़ावा देने, खिलाड़ियों के रजिस्ट्रेशन, नए प्रोजेक्ट लांचिंग, रेफरी कोर्स, राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट आयोजित करने के लिए गुजरात, बंगाल, कर्नाटक, पंजाब, जेएंडके, केरल और अन्य राज्यों को सम्मानित किया गया लेकिन दिल्ली (डीएसए) को कोई सम्मान नहीं मिल पाया। ऐसा क्यों हुआ? क्या एआईएफएफ ने रेवड़ियां बांटी?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |