कब कोई उत्तराखंडी ओलम्पिक गोल्ड जीतेगा?

Uttrakhand win olympic gold

उस समय जब उत्तराखंड को ‘उत्तरांचल’ के नाम से जाना जाता था, बछेंद्री पाल के एवरेस्ट चढ़ने के बाद से उत्तर प्रदेश का यह पर्वतीय इलाका अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आया था। देखते ही देखते उत्तरांचल के अनेक पर्वतारोही करिश्माई प्रदर्शन करने में सफल रहे। बछेंद्री पाल के मार्गदर्शन में ‘ऑल वूमन एवरेस्ट एक्सपीडिशन’ ने नयी तारीखें लिखीं। अनेक पुरुष और महिला पर्वतारोही एवरेस्ट सहित कई चोटियां लांघने में सफल रहे और उत्तरांचल या उत्तराखंड दुनिया भर में जाना-पहचाना जाने लगा।

किसी उत्तराखंडी खिलाड़ी द्वारा खेल या साहसिक खेलों में बड़ा नाम कमाने और प्रदेश के मान-सम्मान को चार चांद लगाने के उदाहरण ज्यादा नहीं है। कारण पचास-साल पहले शुरू हुए पलायन के चलते विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाएं बड़े शहरों में जा बसीं और अथक परिश्रम से रोजी-रोटी के जुगाड़ में लग गई। भले ही कुछ खेलों में उत्तराखंडियों ने देश का नाम रोशन किया लेकिन आजादी के 78 साल और प्रदेश बनने के 24 साल बाद भी उत्तराखंड के पास अपना कोई विशुद्ध ओलम्पिक चैम्पियन नहीं है। भले ही देहरादून के हॉकी खिलाड़ी हरदयाल सिंह 1956 के मेलबर्न ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के सदस्य थे। लेकिन तब उत्तराखंड अस्तित्व में नहीं था।

हॉकी खिलाड़ी मीर रंजन नेगी, सैयद अली, राजेंद्र सिंह रावत, हरिद्वार की वंदना कटारिया और कुछ अन्य, मुक्केबाज नरेंद्र बिष्ट, फुटबॉलर राम बहादुर छेत्री, जतिन सिंह बिष्ट, मुक्केबाजी कोच द्रोणाचार्य जयदेव बिष्ट और कुछ अन्य खेलों में उत्तराखंड के खिलाड़ियों ने नाम कमाया है। लेकिन प्रदेश को विशुद्ध ओलम्पिक चैम्पियन की जरूरत है। पेरिस ओलम्पिक में बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन पदक के नजदीक पहुंचकर चूक गया। हालांकि कुछ खेलों में उत्तराखंडी खिलाड़ी ऊंची पहचान बना रहे हैं लेकिन कब उत्तराखंड से कोई विशुद्ध ओलम्पिक चैम्पियन बन पाएगा? उम्मीद है कि राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के बाद से प्रदेश में खेलों के लिए माहौल बनेगा और कोई उत्तराखंडी देश के लिए ओलम्पिक पदक जीतने में सफल रहेगा!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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