ये मानसिक अनुकूलन कोच क्या बला है….

take responsibility for not having mental conditioning coach graham reid

भारतीय हॉकी टीम के हेड कोच ग्राहम रीड ने वर्ल्ड कप में टीम के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद काफी सोच तोल कर ऐसा बहाना बनाया है , जिसके बारे में हॉकी जानकार सोच भी नहीं सकते थे। उनके अनुसार टीम के खराब प्रदर्शन का बड़ा कारण “मानसिक अनुकूलन कोच (mental conditioning coach)” का नहीं होना है, जिसके लिए वह खुद को जिम्मेदार मानते हैं, क्योंकि उन्होंने खुद कभी ऐसे कोच की मांग नहीं की थी। दूसरा हास्यास्पद बहाना यह बनाया गया है कि मेजबान खिलाडियों पर अपने घर पर खेलने का दबाव था ।

वाह रीड साहब, क्या बहाना बनाया है! क्या खूब ड्रामा रचा है। लेकिन उनकी बहानेबाजी नयी नहीं है ।इस प्रकार के बहाने तमाम विदेशी कोच बनाते आए हैं , क्योंकि उन्हें पता है कि भारत में हॉकी का कारोबार ऐसे लोगों के हाथ है जिन्हें पद और पैसा चाहिए बाकी हॉकी और देश शायद बाद में आते हैं । वरना क्या कारण है कि पिछले 48 सालों से यही बहानेबाजी चल रही है ? हर हार के लिए कोई बहाना सोच लिया जाता है । कोई भी यह नहीं पूछता कि क्यों खिलाडियों और विदेशी कोचों पर देश का करोड़ों बर्बाद किया जाता है ? क्यों देशवासियों और हॉकी प्रेमियों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता है ?

ग्राहम रीड चाहे कोई भी बहाना बनाएं लेकिन सच यह है कि भारतीय हॉकी की रीढ़ टूट चुकी है , जिसे खुद अपनों ने तोडा है , ऐसा देश के पूर्व चैम्पियनों का मानना है । खासकर, हॉकी इंडिया के गठन और केपीएस गिल के हाथों सत्ता हस्तांतरण के बाद से हॉकी में तानाशाही और अनुशासनहीनता बढ़ी है ऐसा कुछ पूर्व खिलाडियों से सुना जा रहा है । 1975 में वर्ल्ड कप जीतने वाले कुछ चैम्पियनों की राय में एवरेज खिलाडियों को आज हीरो बनाया जा रहा है और विदेशी कोचों की आड़ में बहुत से लोगों के स्वार्थ सिद्ध हो रहे हैं ।

कुछ हॉकी जानकारों और खिलाडियों को इस बात की शिकायत है कि देश में हजारों खिलाडी हॉकी से जुड़े हैं लेकिन देश के हॉकी आकाओं को तीस चालीस खिलाडी ही नज़र आते हैं । वही चेहरे घूम फिर कर अंदर बाहर होते रहते हैं । विदेशी कोचों की तारीफ़ करना और अपने कोचों को बदनाम करना ऐसे जी हुजूर खिलाडियों का पेशा बन चुका है । इस परम्परा को खत्म करना भारतीय हॉकी की सबसे बड़ी जरुरत है । साल में छह से आठ महीने कैम्प लगाए जाते हैं और बाकी समय विदेश दौरे करवाए जाते हैं लेकिन नतीजा वही ज़ीरो ।

कुल मिलाकर भारतीय हॉकी हर तरफ से समस्याओं से घिरी है । हॉकी इंडिया दिशा हीन हो चुकी है, क्योंकि देश में हॉकी को चलाने वाले दिमाग नहीं रहे इसलिए हॉकी इंडिया की सीईओ एक विदेशी महिला है, जिस पर सालों से लाखों बहाए जा रहे हैं। वाह री भारतीय हॉकी! वाह वाह हॉकी इंडिया!!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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