कहां गया खेल कोटा, क्यों बढ़ रहे हैं बेरोजगार खिलाड़ी?

what about sports quota where are the jobs

सांस्थानिक और विभागीय स्तर पर दिल्ली और देश के बहुत से खेल आयोजन ठप्प हो चुके हैं। यह हाल तब है जबकि सरकारें अपने कर्मचारियों को फिट और हिट रहने के नारे लगा रही हैं। कुछ साल पहले तक अंतर मंत्रालय, बैंक, बीमा कंपनियों और अन्य सरकारी एवम गैर सरकारी कंपनियों के खेल आयोजन बड़ी तादात में आयोजित किए जाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी और निजी विभागों और कंपनियों में खिलाड़ियों की भर्ती लगभग बंद हो चुकी है।

भारतीय खिलाड़ियों ने वह दौर भी देखा है जब नौकरी पाने के लिए उनके पास मौकों की भरमार थी। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नाम सम्मान पाने वाले खिलाड़ियों के लिए सेना, पुलिस, तेल कंपनियों, रेलवे और अन्य सरकारी विभागों में उच्च पदों की नौकरियां उपलब्ध थीं तो राष्ट्रीय और राज्य स्तर के खिलाड़ी सरकारी के साथ साथ तमाम विभागों में आसानी से नौकरी पा जाते थे। एक दौर ऐसा भी आया जब खिलाड़ी साल में चार बार नौकरी बदल डालते थे। लेकिन आज हाल यह है कि देश के लिए अनेक बार खेलने वालों को भी नौकरी नहीं मिल पा रही।

देश की राजधानी में आयोजित होने वाली सांस्थानिक फुटबाल, हॉकी , वॉलीबाल, एथलेटिक, बास्केटबाल, कुश्ती , कबड्डी और अन्य आयोजन अब यदा कदा ही हो पातेहैं या पूरी तरह बंद हो चुके हैं। यही हाल राष्ट्रीय स्तर पर है। इसलिए क्योंकि मंत्रालयों में खिलाड़ी नाम का प्राणी देखने को नहीं मिलता। इंटर बैंक और अन्य कंपनियों के खेल मुकाबले भी आयोजित नहीं किए जाते, क्योंकि वहां भी खिलाड़ी उपलब्ध नहीं हैं।

खिलाड़ियों की कमी इसलिए है क्योंकि इस देश का खिलाड़ी सरकारी दोगलेपन का शिकारहै। एक तरफ तो कहा जा रहा है कि हर बच्चे और युवा को कोई न कोई खेल खेलना चाहिए। देश को खेल महाशक्ति बनाने का दम भी भरा जा रहा है। जब रोजी रोजगार नहीं होगा तो कोई खिलाड़ी क्यों बनना चाहेगा?

1982 का दिल्ली एशियाड भारतीय खिलाड़ियों के लिए वरदान साबित हुआ। देश भर के सरकारी विभागों में पांच फीसदी खेल कोटे का प्रावधान अस्तित्व में आया। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को पसंद की नौकरियाँ मिलीं। लगभग दस साल तक खिलाड़ियों की भर्ती का सिलसिला चला। लेकिन आज आलम यह है कि शायद ही किसी विभाग के पास किसी खेल की स्तरीय टीम बची हो। कुल मिलाकर खेल बेरोजगारी का ग्राफ लगातार उठता जा रहा है। सरकारी विभागों में आम नौकरी मिलना ही संभव नहीं हो पा रहा तो फिर खिलाड़ियों को कोई क्यों पूछने लगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल कई लाख खिलाड़ी बेरोजगारों की सूची में बढ़ जाते हैं। यह कतार लगातार लंबी हो रही है। बेशक, मामला गंभीर है। यदि सुरक्षित भविष्य की गारंटी नहीं होगी तो कोई खेलना क्यों चाहेगा?

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *