मेराथन सफर : शिकागो से कल्वाड़ी तक!

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उत्तराखंड में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों से प्रदेश के खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों को क्या मिला और क्या मिलेगा, इसका जवाब भविष्य के गर्त में है। सरकारी प्रयासों और करोड़ों के खर्च से उत्तराखंड ने जैसा आयोजन किया उसे लेकर देश-दुनिया में बहुत कुछ कहा-सुना जा रहा है। हमेशा की तरह वाह-वाह और हाय-हाय के राजनीतिक नारे लगाए जा रहे हैंl लेकिन कुछ दिन पहले उत्तराखंड के जिले पौड़ी गढ़वाल के गांव कल्वाड़ी में आयोजित मैराथन की चर्चा एक व्यक्ति, एक गांव और चंद मित्रों के प्रयास से अमेरिका तक सुनाई पड़ रही है । इसलिए क्योंकि कल्वाड़ी के सपूत विक्रम सिंह नेगी शिकागो में कार्यरत हैं और अपने पैतृक गांव कल्वाड़ी को नहीं भूले हैं। पिछले तीन सालों से मैराथन का आयोजन कर रहे हैं जिसमें सैकड़ों की भागीदारी होती है।

विक्रम उत्तराखंड के एक खिलाड़ी परिवार से हैं। उनके दादा स्वर्गीय केशर सिंह नेगी दिल्ली के चैम्पियन फुटबॉल क्लब गढ़वाल हीरोज के संस्थापक थे और सरोजनी नगर में रहते थे। विक्रम दिल्ली में पढ़े और 1995 में अमेरिका चले गए। वह खुद मैराथन दौड़ते रहे हैँ और दो बार विश्व प्रसिद्ध शिकागो मैराथन में भाग ले चुके हैं। लेकिन अपने पैतृक गांव को कभी नहीं भूले। मैराथन शुरू करवाने के पीछे उनका ध्येय अपनी जन्मभूमि को याद रखना और गांव छोड़ने वालों को वापस लौटा लाने का रहा है। तारीफ की बात यह है कि मैराथन के पदक विजेताओं को विक्रम अपनी जेब से नकद पुरस्कार देते हैं। मैराथन के आयोजन के पीछे उनका असली ध्येय खाली होते गांव को फिर से बसाना, अपनों से मेल मुलाकात और खेलों के लिए माहौल बनाने का है। इस भगीरथ प्रयास में उनके नाते-रिश्तेदार, कल्वाड़ी ग्राम सभा, कल्वाड़ी यूथ क्लब और गढ़वाल हीरोज क्लब की भागीदारी प्रशंसनीय रही है।

पुरुष क्रॉस कंट्री (12 किलोमीटर) के विजेता हरिद्वार के आशीष सैनी और महिला (छह किलोमीटर) विजेता चमोली की भागीरथी रहीं। विक्रम मैराथन दौड़ के आयोजन में अकेले चले थे और अब उनके पीछे कारवां चल पड़ा है l यह उनका अपनी मातृभूमि के प्रति प्यार नहीं तो और क्या है!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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