उड़ीसा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक ने 13 जनवरी से अपने राज्य में होने वाले हॉकी वर्ल्ड कप में सभी राज्यों के मुख्य मंत्रियों को आमंत्रित करने का फैसला किया है , जोकि स्वागत योग्य कदम है । उल्लेखनीय है कि उड़ीसा पिछले कुछ सालों से हॉकी का हब बना हुआ है । लेकिन देश के हॉकी प्रेमी और खेल जानकार चाहते हैं कि एक मात्र वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्यों को भी आमंत्रित किया जाए और हो सके तो उन्हें सम्मानित भी किया जाना चाहिए |
मुख्यमंत्री का हॉकी प्रेम जगजाहिर है । पिछले कई सालों से भारतीय हॉकी और हॉकी इंडिया को उड़ीसा सरकार का सहयोग मिल रहा है। भले ही हॉकी भारत सरकार की प्राथमिकता में शामिल है लेकिन पटनायक सरकार ने खेल और खिलाडियों की खिदमत में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। यदि आज भारतीय खिलाडी संपन्न हैं और उन्हें बेहतर माहौल मिल रहा है तो उड़ीसा सरकार के कारण । यदि यह मान लिया जाए कि टोक्यो ओलम्पिक की जीत में पटनायक सरकार का बड़ा योगदान रहा है तो गलत नहीं होगा ।
सही मायने में भारतीय हॉकी की प्रगति की परीक्षा वर्ल्ड कप में ही होगी । यदि भारत 29 जनवरी को खेले जाने वाले फाइनल में शामिल नहीं होता तो यह मान लेना पड़ेगा कि 1975 के बाद भारतीय हॉकी को ग्रहण लग चुका है । बेशक, वर्ल्ड कप ही भारतीय हॉकी की असल परीक्षा है जिस में भारत लगातार फेल होता आ रहा है । नतीजन देश में हॉकी की लोकप्रियता निरंतर घट रही है । किसी भी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में दस बीस हजार की उपस्थिति की कल्पना बेकार है । हो सकता है कि उड़ीसा में कुछ एक हजार की भीड़ जुटा ली जाए लेकिन यदि मेजबान टीम अपने माहौल और अपने लोगों के बीच नाकाम रहती है तो भविष्य अंधकारमय समझें ।
1971 में मेजबान पकिस्तान की जीत के साथ शुरू हुए वर्ल्ड कप में भारत मात्र एक बार विजेता बना है लेकिन जिस पकिस्तान की हालत आजकल खराब चल रही है उसने सर्वाधिक चार अवसरों पर वर्ल्ड कप जीता है । ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड तीन तीन बार और जर्मनी ने दो बार कप जीता । नयी ताकत के रूप में उभरा बेल्जियम पिछला विजेता है ।
47 साल बाद भारत के पास अपने घर में चैम्पियन बनने का सुनहरी मौका है । कोच और कप्तान के अनुसार भारतीय खिलाडी उत्साह से लबालब हैं और 1975 दोहराने के लिए तैयार हैं । लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड ,बेल्जियम , जर्मनी और सबसे बड़े खतरे के रूप में आस्ट्रेलिया भारत के लिए खतरा हो सकते हैं । खासकर ऑस्ट्रेलिआ से पार पाना हमेशा मुश्किल रहा है ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |