महाशक्ति बनना है तो कॉमनवेल्थ को भुला दें..

Want to be super power forget commonwealth games

ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया शहर में आयोजित होने वाले 2026 के राष्ट्रमंडल खेलों की प्रारम्भिक सूची में जिन 16 खेलों को शामिल किया गया है उनमें कुश्ती निशानेबाजी और तीरंदाजी जैसे खेल शामिल नहीं हैं। हालाँकि अभी अंतिम फैसला होना बाकी है लेकिन माना यह जा रहा है कि इन खेलों को लेकर अंतिम फैसला हो चुका है जिसे लेकर भारत में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। विपक्षी पार्टियों ने तो बाकायदा सरकार को घेरना भी शुरू कर दिया है।

भारतीय खेलों से जुड़े एक विपक्षी पार्टी नेता ने तो यहाँ तक कह दिया है कि सरकार खिलाडियों से धोखा धड़ी कर रही है। उनका तर्क यह है कि राष्ट्र मंडल खेलों में भारतीय खिलाडियों ने निशानेबाजी और कुश्ती में हमेशा अधिकाधिक पदक जीते हैं। तीरंदाजी में भी पदक मिलते रहे हैं। कुछ अन्य दलों ने भी सरकार को घेरने का प्रयास किया है और आरोप लगाया है कि एक तरफ तो सरकार खेलो इंडिया और अन्य कार्यक्रमों से देश में खेलों के लिए माहौल बनाने का दम भरती है तो दूसरी तरफ जिन खेलों में भारतीय खिलाडी पदकों के दावेदार हैं उनके साथ हो रही नाइंसाफी पर मौन साधे है और खेल आयोजन समिति का विरोध नहीं कर रही।

यह सही है कि निशानेबाजी और कुश्ती में भारतीय प्रदर्शन एशियाड, ओलम्पिक और कॉमनवेल्थ खेलों में शानदार रहा है। खासकर कुश्ती में ओलम्पिक पदक जीतने का सिलसिला चल निकला है। लेकिन पिछले दो ओलम्पिक खेलों में भारतीय निशानेबाज देशवासियों की उम्मीद पर खरे नहीं उतर पाए हैं। रियो और तत्पश्चात टोक्यो ओलम्पिक से खाली हाथ लौटना इसलिए ज्यादा दुखद कहा जाएगा क्योंकि हमारे निशानेबाज ढोल नगाड़े बजाते हुए गए। उनमें से ज्यादतर विश्व चैम्पियन और रैंकिंग में नंबर एक बताए गए लेकिन असली परीक्षा में निपट कोरे साबित हुए।

निशानेबाजों से देश के खेल प्रेमी बेहद नाराज हैं उन पर करोड़ों खर्च किए गए पर कोई भी कसौटी पर खरा नहीं उतरा। तीरंदाजी में तो हालत और भी खराब हैं। बेहद कम पर्तिस्पर्धा वाले खेल में भारतीय तीरों का बार बार चूकना और खिलाडियों का खाली हाथ लौटना सरासर निंदनीय है। सरकार द्वारा हर प्रकार का सहयोग दिया जा रहा है। एशियाड और राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने पर लाखों पाते हैं, जोकि देश के टैक्स पेयर की जेब से निकलता है।

निशानेबाजी में खिलाडियों और कोचों के बीच तनातनी और राष्ट्रीय फेडरेशन के नियम विरुद्ध कार्यों की भी लम्बी सूची है। खेल मंत्रालय निशानेबाजों के प्रदर्शन से तो नाखुश है ही साथ ही पदाधिकारियों की करतूतें भी शर्मनाक रही हैं। उधर तीरंदाजी में कुछ खलीफा प्रवृति के खिलाडी खेल बिगाड़ते आ रहे हैं। जहां तक कुश्ती की बात है तो यहाँ काफी कुछ ठीक ठाक चल रहा है। लेकिन यह न भूलें कि राष्ट्रमंडल खेलों में यूरोप के दमदार देश, रूस, अमेरिका, जापान, तुर्की, चीन, ईरान, कोरिया आदि भाग नहीं लेते। नतीजन भारतीय खिलाडियों के लिए पदकों की लूट आसान हो जाती है। मात्र इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और भारत के बीच अधिकाधिक पदकों का बंटवारा होता आया है।

बेहतर होगा भारतीय खिलाडी और खेल आका 2022 के राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों पर ध्यान दें। उन्हें 2024 के ओलम्पिक में खेल महाशक्ति बनकर भी दिखाना है। 2026 के राष्ट्रमंडल का रोना बाद में रोया जा सकता है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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