खिलाडियों और खासकर, महिला खिलाडियों को बराबर सम्मान मिलेगा!

Voting right to sports person including women players

सालों पहले जयपुर में भारतीय कुश्ती फेडरेशन के चुनाव में द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित गुरु श्रेष्ठ गुरु हनुमान भी मैदान में कूद पड़े। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माने। उनके कुछ शिष्य भी सदस्य इकाइयों में थे । उन्होंने गुरु को शर्तिया फेडरेशन अध्यक्ष बनाने का झांसा दिया था लेकिन गुरु हनुमान को गिनती के कुछ वोट मिले, जबकि पूछने पर हर एक उन्हें वोट देने की बात कर रहा था।

प्रकाश पादुकोण और विजय अमृत राज तो बाकायदा बैडमिंटन एसोसिएशन और टेनिस एसोसिएशन के शीर्ष पद पा चुके थे लेकिन सत्ता के शातिरों ने टिकने नहीं दिया। इसी प्रकार कई अन्य खेलों में कुछ जानेमाने खिलाड़ियों ने फेडरेशन में घुसने की कोशिश की तो उन्हें हैरान परेशान किया गया।

कहने का तातपर्य यह है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि अच्छा खिलाड़ी या कोच खेल मैदान से हटने के बाद फेडरेशन अधिकारियों के बीच स्वीकारा जाएगा या कामयाब हो पाएगा। लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ (एआईएफएफ) से साफ कह दिया है कि खेल प्रशासन में उन खिलाड़ियों को भी बराबर मौका दिया जाए , जिनके खेल कौशल और तकनीक से खेल को नाम सम्मान मिला है। माननीय न्यायालय ने निर्देश दिया है कि फेडरेशन में सिर्फ नेता और प्रशासनिक अधिकारी ही शामिल न हों, बल्कि पचास फीसदी खिलाड़ियों को भी वोट देनेका अधिकार मिले|

देर से ही सही देश की न्याय व्यवस्था ने खेल कुव्यवस्था को सुधारने का बीड़ा उठा लिया है। फुटबाल फेडरेशन को यह भी निर्देश दिया गया है कि उसके चुनाव में खिलाडियों की भी भागीदारी होनी चाहिए जिनमें महिला खिलाडियों का होना जरुरी है
अब देखना यह होगा कि देश में खेलों का कारोबार करने वाले कहाँ तक सुधरते हैं । खेल सुधार की दिशा में सर्वोच्च न्यायलय ने हॉकी को संचालित करने वालों को भी कड़ी फटकार लगाई है और हॉकी इंडिया के चुनाव फिर से करवाने के आदेश दिए हैं।

देश के आम खिलाडी, पूर्व चैम्पियनों और गुरुओं को भी लगता है कि वर्षों से उन्हें छला जाता रहा है। देश में खेलों और खेल संघों में नई और साफ़ सुथरी व्यवस्था के लागू होने के बाद से माहौल सुधर सकता है। यदि खिलाडियों को वोट देने का अधिकार मिलता है तो न सिर्फ फुटबाल और हॉकी में सुधार होगा, तमाम खेलों को योग्य प्रशासकों की सेवाएं मिलेंगी और खेल शर्तिया प्रगति करेंगे।

भारतीय खेलों पर सरसरी नज़र डालें तो ज्यादातर खेल नेताओं और राजनीति के खिलाडियों के गुलाम बन कर रह गए हैं| फुटबाल को दास मुंशी और प्रफुल्ल पटेल ने अपनी ठोकर पर चलाया और जो खेल कभी एशियाड और ओलम्पिक में हमारी बड़ी पहचान था आज उसकी हालत किसी से छुपी नहीं है। शायद इसी लिए इस खेल में और शायद सभी खेलों में खिलाडियों कि भागीदारी की जरुरत महसूस की जा रही है| प्रकाश पादुकोण, विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन, योगेश्वर दत्त, पीटी उषा, कर्णम मल्लेश्वरी, अजित पाल, अशोक ध्यान चंद, ज़फर इकबाल और दर्जनों अन्य चैम्पियनों को उनके खेलों और खेल आकाओं ने भुला दिया था, जोकि खेल के लिए घातक रहा है। शायद यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायलय को याद दिलाना पड़ा है कि खिलाडियों को साथ लेकर चलें वरना …..!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *