शायद भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान और मंजे हुए बल्लेबाज विराट कोहली अपनी पारी खेल चुके हैं। पिछले कई सालों से मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले और सफल खिलाड़ी एवम कप्तान के रूप में नाम सम्मान कमाने वाले विराट अब अपनी बल्लेबाजी या कप्तानी लिए सुर्खियों में नहीं हैं। वह इसलिए चर्चा में हैं क्योंकि बल्ला टांगने या सन्यास से कुछ पहले हर कप्तान को ऐसा वक्त देखना पडता है।
पिछले अनुभवों की बात करें तो बिशन सिंह बेदी, अजित वाडेकर, कपिल देव, अजहरुद्दीन, सौरभ गांगुली, और धोनी ने शराफत के साथ कप्तानी नहीं छोड़ी । इनमें से ज्यादातर ने स्वेच्छा से पदत्याग नहीं किया। उन्हें जबरन हटने के लिए विवश किया गया। यही सब विराट के साथ हो रहा है क्योंकि यही अपनी क्रिकेट का चरित्र और असली चेहरा है।
विजय रथ पर सवार होकर हमारे क्रिकेटर यह भूलजातेहैं कि एक दिन उन्हेँ पद त्यागना है। स्वेच्छा से नहीं तो जबरन उन्हें हटाया जाएगा। ज़ाहिर है पीड़ा होती है। आखिर भारतीय क्रिकेट उनकी बपौती तो है नहीं। जो कप्तान या खिलाड़ी भारतीय बोर्ड को पसंद नहीं आता या जो उनका यस मैन बनकर नहीं रहेगा उसे समय से पहले भी जाना पड़ सकता है । यह भी सच है कि विराट शायद गांगुली की तरह भाग्यशाली नहीं है, जिसके सर पर जगमोहन डालमिया का हाथ रहा और बार बार फ्लाप होने के बावजूद भी गांगुली जमे रहे और अंततः सफलतम कप्तान के रूप में रिटायर हुए।
हो सकता है विराट के सिर से बहुत सों के हाथ हट गए हों पर कुछ हद तक वह भी हालात के लिए जिम्मेदार कहे जा सकते हैं । हर शीर्ष खिलाड़ी शिखर पर रहते बड़े छोटे को भूल जाता है। बदले में उसे वही चुकाना पडता है जोकि महेंद्र सिंह धोनी चुका कर गए। रोहित शर्मा केसाथ उनके रिशों की खटास को कौन नहीं जानता। ठीक वैसेही जैसे बेदी- वाडेकर, गावस्कर-कपिल के बीच भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं रहा। वैसे भी सब खिलाड़ी गावस्कर, विश्वनाथ, मोहिंदर, सचिन, लक्ष्मण, द्रविड़ जैसे शांतचित्त नहीं होते। रोहित अगर विराट को लंगड़ी नहीं लगाएंगे तो कप्तान कैसे बनेंगे!
भारतीय क्रिकेट बोर्ड का एकसूत्री प्रोग्राम यह रहा है कि किसी भी सीनियर खिलाड़ी या कप्तान को सम्मान के साथ विदाई ना दी जाए, जैसा कि धोनी केसाथ हुआ था। विराट ने यदि स्वेच्छा से टी 20 की कप्तानी छोड़ी तो वन डे टीम की कप्तानी से बेदखल करने से पहले पूछा जा सकता था।
कुल मिला कर बीसीसीआई रोहित शर्मा को टीम की बागडोर सौंपने के लिए प्रयासरत है। ऐसा विराट के रहते सम्भव नहीं लगता। अब चूंकि खुद विराट मुखर हो गए हैं , ऐसे में सौरभ गांगुली और उनकी टीम को बहाना मिल गया है। यह भी सच है कि राजनीति और बोर्ड नीति रोहित के पक्ष में हैं। तो फिर विराट को जाना ही पड़ेगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |