पीटी उषा के आईओए अध्यक्ष पद संभालने के बाद उम्मीद बंधी थी कि भारतीय खेलों में सुधार आएगा। न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खिलाड़ी तरक्की – प्रगति करेंगे, आईओए प्रशासन में भी सुधार की उम्मीद बंधी थी । लेकिन ऊषा के पद संभालने के बाद जो घमासान मचा है उसे लेकर देश के तमाम खेल संघ , खिलाड़ी और अधिकारी हैरान रह गए हैं।
यह चर्चा भी जोरों पर है कि ऊषा इस खेल को अकेले नहीं खेल रही है। तो क्या उसे सरकारी स्तर पर समर्थन मिल रहा है या खेल मंत्रालय उसे डटे रहने की ताकत दे रहा है? तीन चौथाई से भी ज्यादा दमदार और ऊंची पहुंच वाले रसूखदार लोग उसे चौतरफा घेरे हैं। फिरभी वह अडिग खड़ी है तो यह मानना पड़ेगा कि उसमें दम है । एक एथलीट के रूप में उसका संघर्ष जगजाहिर है। हार नहीं मानने की जिद्द उसमें शुरू से रही थी। इसी जिद्द और लगातार संघर्ष करने की कूवत ने उसे एशिया की महानतम एथलीट बनाया। भले ही ओलंपिक में वह सेकंड के सौवें हिस्से से पदक चूक गई लेकिन आज जहां पहुंची है उसकी कल्पना शायद उसने भी नहीं की होगी। वह अडिग है क्योंकि पीटी से पिटी ऊषा नहीं कहलाना चाहती। वह चाहती है कि खेल जगत में उसकी मिसाल ‘ खूब लड़ी मर्दानी ‘ के रूप में दी जाए। ठीक उसी तरह जैसे विनेश फोगाट ने गुण्डातंत्र का सामना किया और आज मिसाल बन कर हरियाणा की राजनीति में ठोस कदम बढ़ाया है।
भले ही ऊषा ने विनेश का साथ नहीं दिया और आलोचना का पात्र बनी थी । उसे भी अपने एथलेटिक कैरियर में कुछ एक साथी एथलीटों का विरोध सहना पड़ा लेकिन आईओए अध्यक्ष बनने के बाद हर कदम पर विरोध हो रहा है। उस पर आईओए के पैसे के दुरुपयोग, नियमों से खिलवाड़ और अधिकारक्षेत्र लांघने के गंभीर आरोप लगे हैं। हो सकता है उसे अविश्वास प्रस्ताव का सामना भी करना पड़े।
हालांकि ऊषा ने सभी आरोपों को खारिज किया है और बहुमत वाले बिगड़ैल विपक्ष का डट कर मुकाबला करने की ठानी है। वह यूं ही हार नहीं मानना चाहती और ना ही पिटी ऊषा कहलाना चाहेगी। यदि वह अपने मिशन में सफल रहती है तो उसे खूब लड़ी मर्दानी के रूप में जरूर याद किया जाएगा।
Rajendar Sajwan
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |