विश्व कप: नया कुछ नहीं , बस पैसे की बरबादी

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पिछले कई दशकों से भारतीय फुटबाल प्रेमी अपनी फुटबाल की बदहाली का रोना रोते आ रहे हैं । शुरू शुरू में सरकार और खेल मंत्रालय पर सौतेले व्यवहार का आरोप लगाया जाता रहा और कहा गया कि सरकार फुटबाल को बढ़ावा नहीं दे रही । लेकिन इधर कुछ सालों से सरकार ने तब भी इस खेल को निरंतर बढ़ावा देने का प्रयास किया, जबकि भारतीय फुटबाल का प्रदर्शन स्तरीय नहीं रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि फुटबाल दुनियां का सबसे लोकप्रिय खेल है और अधिकाधिक देशों और लोगों द्वारा खेला जाता है ।

भारतीय फुटबाल आज कहाँ है यह जानने के लिए पिछले कुछ सालों का भारतीय रिकार्ड खंगालें तो सिर्फ निराशा ही हाथ लगेगी । ना सिर्फ देश और उसके खिलाडियों का प्रदर्शन गिर रहा है, मीडिया और तमाम इकाइयां भी इस खेल के साथ उपेक्षित व्यवहार कर रहे हैं। ताज़ा उदाहरण महिला अंडर 17 विश्व कप है जिसका आयोजन हमने किया और हम कहीं भी नजर नहीं आए।
बल्कि कहना यह होगा कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा ! कमसे कम भारतीय फ़ुटबाल प्रेमियों ने तो कुछ भी नहीं देखा । देश के खिलाडियों को भी कुछ भ सीखने को नहीं मिला।

11 अक्टूबर से शुरू हुए टूर्नामेंट का समापन 30 अक्टूबर को हुआ और स्पेन ने एक बार फिर से कप पर कब्ज़ा जमा लिया । भारतीय लड़कियों ने तीन मैच खेले और सभी हारे । लेकिन मेजबान टीम के प्रदर्शन को देखते हुए आयोजन की कामयाबी का आकलन नहीं किया जाना चाहिए । भारतीय लड़कियों से बहुत अधिक की उम्मीद तो नहीं थी लेकिन शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि भारतीय टीम इस कदर आसानी से हथियार डाल देगी । अमेरिका से आठ गोल से हारने के बाद कई फुटबाल प्रेमी पूछ रहे थे कि अपनी टीम को विदेश भेजने और लाखों खर्च करने का क्या यही इनाम है !

जहां तक आयोजन को जंगल में मोर नाचने के साथ जोड़ा जा रहा है तो कुछ भी गलत नहीं है । बीस दिन तक चला आयोजन खानापूरी से ऊपर नहीं उठ पाया । मीडिया, रेडियो, टीवी चैनल और खासकर समाचार पत्रों ने महिला विश्व कप की खबर तक नहीं ली । फुटबाल में राजनीति के चलते उदघाटन और समापन समारोह पर मीडिया ने मेहरबानी जरूर दिखाई। लेकिन कुल मिलाकर फुटबाल हलकों में भारतीय फुटबाल के कर्णधारों की आलोचना हो रही है ।

यह सही है कि मेहमानों की खूब खातिर की गई फीफा के अधिकारीयों को भी खुश किया गया।लेकिन भारतीय फुटबाल को क्या हासिल हुआ ? देश का कितना मान सम्मान बढ़ा और भविष्य के खिलाडियों को क्या सीखने को मिला ? इन सब सवालों का एक ही जवाब है कि कुछ भी नहीं । सिर्फ और सिर्फ पैसे की बर्बादी हुई । कुछ खेल जानकार और एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन का दवा करने से पहले भारतीय खेल आयोजक उस खेल में अपनी हैसियत का आकलन जरूर कर लें । वरना इस तरह के आयोजन देश के पैसे की बर्बादी और देश को धोखा देनेवाले ही हो सकते हैं ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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