इसमें दो राय नहीं कि कोविड 19 ने दुनिया भर के खेलों और खिलाड़ियों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। लेकिन पता नहीं क्यों भारतीय खिलाड़ियों पर कुछ ज्यादा ही असर पड़ा है। थाईलैंड ओपन के नतीजों से साफ हो गया है कि भारतीय बैडमिंटन से अब बहुत ज्यादा की उम्मीद नहीं रही है। हालांकि हार पर खिलाड़ी , कोच और बैडमिंटन एसोसिएशन के पास कई बहाने हैं लेकिन आम भारतीय बैडमिंटन प्रेमी आगामी ओलंपिक में पदक की उम्मीद को लेकर निराश हो गया है।
बेशक, *बहाने बनाना सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय खिलाड़ियों, अधिकारियों और खेल मंत्रालय के ज़िम्मेदारों* अधिकारियों का अधिकार है। देश के खेल जानकार और खेल प्रेमियों में से ज़्यादातर का मानना है कि टोक्यो ओलंपिक की विफलता को सामने देख कर बहानेबाज़ी का खेल शुरू हो गया है।
खिलाड़ी, कोच और टीम प्रबंधन कह रहे हैं कि बिना मैच अभ्यास के साल के पहले आयोजन में उतरे खिलाड़ी अपनी पूरी क़ाबलियत के साथ नहीं खेल पाए। लेकिन क्यों? बाई और उसके खिलाड़ियों को पता होना चाहिए कि *देश की जनता के खून पसीने की कमाई उन* पर खर्च की जा रही है। सरकार उन्हें हर प्रकार की सुविधाएँ तो दे ही रही है, मनमानी की छूट भी उन्हें प्राप्त है। वरना हमारी बैडमिंटन महारानी पीवी सिंधु, कैसे टीम से अलग थलग लंदन पहुँचीं और उनकी ट्रेनिंग कैसी रही यह तो पहले ही मुकानले में हुई हार से पता चल गया है।
यह सही है कि सायना नेहवाल कोरोना की चपेट में आई और उसे फिट होने में समय लगा होगा। उसके पति पारूपल्ली कश्यप भी फिट नहीं होने के कारण मुक़ाबले से हटे। पुरुष डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में भी हमारे खिलाड़ी चल नहीं पाए। श्रीकांत सहित कुछ खिलाड़ियों ने तो लड़ने से पहले ही हथियार डाल दिए। ज़ाहिर है कोरोना ने उन्हें बुरी तरह हिला कर रख दिया है। लेकिन बाई से नाराज़ कुछ लोग कह रहे हैं कि भारतीय *बैडमिंटन की चिड़िया शायद उड़ना भूल गई* है। शायद यह बर्ड फ़्लू का असर है, वरना जो खिलाड़ी विश्व स्तरीय और ओलम्पिक में पदक के दावेदार आँके जाते थे उन्हें कोरोना इतना कमजोर कैसे कर सकता है!
कुछ भारतीय कोच अपना नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं कि बैडमिंटन को संचालित करनेवाली बाई खिलाड़ियों की मनमानी से डरने लगी है। विश्व चैम्पियन और ओलंपिक पदक विजेता सिंधु मनमानी कर रही हैं तो ओलंपिक कांस्य विजेता सायना भी गंभीर नहीं हैं। उनके देखा देखी बाकी खिलाड़ी भी कोच और टीम स्टाफ को ज़्यादा भाव नहीं देते। ऐसी हालत में चन्द महीने बाद होने वाले *ओलंपिक खेलों में पदक जीतने की उम्मीद* धूमिल होती जा रही है।
आने वाले दिन भारतीय खिलाड़ियों के लिए कड़ी चुनौती वाले साबित हो सकते हैं। उन्हें फार्म में वापस तो लौटना होगा साथ ही फिट होकर जीतने की आदत को फिर से अपनाना होगा। यह ना भूलें कि पाँच साल पहले रियो ओलंपिक में सिंधु ही पदक जीत पाई थी। तत्पश्चात बहुत कुछ बदल चुका है। उम्र और कोरोना उन पर गभारी हैं। शीघ्र वापसी नहीं हुई तो *टोक्यो ओलंपिक भारतीय बैडमिंटन की क़ब्रगाह बन* सकता है।
Rajender Sajwan
Senior, Sports Journalist