जो जीता वो सिकंदर लेकिन देश का करोड़ों बर्बाद करने वालों को क्या कहेंगे?
टोक्यो ओलम्पिक को निपटे डेढ़ महीना होने को है। तत्पश्चात आयोजित पैराओलम्पिक खेलों की कामयाबी भी धीरे धीरे आम भारतीय के मानस पटल पर अपनी खास जगह बना चुकी है। जीवन में खेलों के महत्व और खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन से देश को मिलने वाली यश कीर्ति के बारे में भारतीय खिलाड़ियों से ज़्यादा शायद ही कोई जानता हो। वैसे तो हर छोटी बड़ी कामयाबी पर खिलाड़ियों को बहुत कुछ देने की परंपरा रही है लेकिन ओलम्पिक पदक जीतने की खुशी तब सौ गुना बढ़ जाती है जब सरकार, बड़ी छोटी कंपनियाँ और औद्योगिक घराने खिलाड़ियों को माला माल कर देते हैं। लेकिन ऐसा सौभाग्य सभी को नहीं मिलता। जो जीता वही सिकंदर, लेकिन जो हारा उसको क्या कहेंगे?
बेशक, हारने वाले को कोसने से बेहतर होगा उसे ढाढ़स बँधाया जाए, उसे हिम्मत दी जाए ताकि वह अगली बार बेहतर कर सके और अन्य पदक विजेताओं की तरह उस पर भी धन वर्षा हो, बड़ी नौकरी और पद मिले और उसे हीरो की तरह पूजा जाए। लेकिन बार बार और लगातार विफल होने वालों को आख़िर कब तक माफ़ किया जा सकता है? कब तक उन पर देशवासियों के खून पसीने की कमाई लुटाई जाती रहेगी?
इसमें दो राय नहीं कि यूरोपीय देशो को छोड़ एशिया और अफ्रीका के ज़्यादातर देश अपने पदक विजेताओं को भारत की तरह मान सम्मान, पैसा, शौहरत नहीं दे पाते। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन, कोरिया, केन्या, जमैका जैसे देशों के पास चैम्पियनों की भरमार है और हम कभी कभार ही पदक जीत पाते हैं। हम अपने पदक विजेताओं को हीरो बना देते हैं। उन्हें ऐसी हर सुविधा मिलती है, जिसे पाने के लिए एक बड़ा योग्य और शिक्षित वर्ग जीवन भर तरसता रहता है। खिलाड़ियों को आईएएस और आईपीएस जैसा दर्ज़ा दिया जाता है। यह भी सच है की एक स्थिति पर पहुँचने के बाद चैम्पियन खिलाड़ियों की तैयारी का सारा खर्च सरकार उठाती है, जोकि करोड़ों में आता है। मसलन भारत सरकार की खेल प्रोत्साहन के नाम पर गठित टाप्स स्कीम।
अब ज़रा टाप्स स्कीम का सच भी जान लेते हैं| टॉप्स का सुखभोग करने वाले ज़्यादातर खिलाड़ी देशवासियों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतार पाए। डींगे हांकने वालों को मुँह की खानी पड़ी, जिनमें कुछ बड़बोले मुक्केबाज़, तीरन्दाज़ और निशानेबाज़ सबसे पहली कतार में खड़े हैं। ख़ासकर निशानेबाजी में जो गुटबाजी और अनुशासनहीनता देखी गई उस पर निशानचियों की शीर्ष संस्था और सरकार का खेल मंत्रालय मौन क्यों है? क्यों झूठा प्रचार करने वाले कोचों और फ़ेडरेशन अधिकारियों को दंडित नहीं किया जा रहा? नाकामी पर रोने का नाटक करने वाली मुक्केबाज़ और निशानेबाज़ फ़ेडरेशन और ज़िम्मेदार लोगों के लाड़ले कब तक बचे रहेंगे? कब तक उभरते खिलाड़ियों की राह रोकेंगे?
कुश्ती, एथलेटिक, हॉकी, बैडमिंटन, मुक्केबाज़ी और वेटलिफ्टिंग में पदक मिले लेकिन बाकी के खिलाड़ी किस लिए टोक्यो गए थे? जिस किसी ने अपना श्रेष्ठ दिया, उसको साधुवाद लेकिन तामाम साधन सुविधाओं का सुखभोग करने वाले असफल खिलाड़ियों से सवाल जवाब तो होना ही चाहिए!
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |