भारतीय क्रिकेट टीम की पकिस्तान के हाथों हुई हार और उसके बाद श्रीलंका द्वारा एशिया कप से बाहर का दरवाजा दिखाए जाने पर पूरा देश ग़मगीन है । यह सदमा इतना बड़ा है कि आम भारतीय क्रिकेट प्रेमी पगलाया फिर रहा है । कोई खिलाडियों को बुरा भला कह रहा है तो कोई टीम मैनेजमेंट, कोच और बीसीसीआई को गरिया रहा है । कुछ तथाकथित क्रिकेट एक्सपर्ट तो यहां तक कहने लगे हैं कि क्रिकेट पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए । है न कमाल कि बात ।
चलिए आम क्रिकेट प्रेमी से अपनी टीम की हार बर्दाश्त नहीं होती या गुस्से में पडकर वह कुछ भी बोल सकता है लेकिन देश में क्रिकेट की खाने कमाने वाले क्रिकेट मीडिया को क्या हो गया है ? बीसीसीआई के टुकड़ों पर पलने वाले और अक्सर बोर्ड अधिकारीयों द्वारा लतियाए जाने वाले हमारे क्रिकेट विद्वानों को किसने खिलाडियों को कोसने का अधिकार दिया है ?
इस शर्मनाक हार से पहले जब अर्शदीप ने पकिस्तान के विरुद्ध आशिफ अली का कैच छोड़ा तो और भी शर्मनाक और निंदनीय व्यवहार देखने को मिला । इस क्रिकेट प्रसंग को पता नहीं क्यों खालिस्तान से जोड़ दिया गया । सच्चाई तो यह है कि इस प्रकार की चूक खेल का हिस्सा है लेकिन जिन लोगों को किसी दूसरे चश्मे से देखने की आदत पड़ गई है उनके लिए तो यही कहा जा सकता है , ‘ आप देश भक्त और क्रिकेट भक्त हो ही नहीं सकते ‘।
हमें पकिस्तान से हारना तो कभी भी स्वीकार्य नहीं है और इसी प्रकार पाकिस्तानी आवाम भी चाहता है कि उनकी टीम भारत के अलावा चाहे किसी से भी हार जाए लेकिन भारत से हारने पर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर होता है । शायद इसी प्रकार की मानसिकता के कारण दोनों देशों की हॉकी बर्बाद हुई है । जब दोनों देश एक थे तब विश्व विजेता थे । अलग हुए तो जीतने की बजाए एक दूसरे को नीचा दिखाने पर ज्यादा जोर दिया और आज आलम यह है कि दोनों देशों कि हॉकी बर्बाद हो चुकी है ।
आठ ओलम्पिक खिताब जीतने वाला भारत आज ऑस्ट्रेलिया से सात-आठ गोलों से हार जाता है तो कोई चिंता नहीं लेकिन पकिस्तान से हार जाए तो देश भक्ति हिलोरें मारने लगती है । यही हाल पकिस्तान का है । वह दो अवसरों पर ओलम्पिक क्वालीफाई नहीं कर पाया तो भारत में ख़ुशी जैसा माहौल देखने को मिला । लेकिन जब भारतीय हॉकी टीम 2008 के बीजिंग ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई नहीं हुई और चार साल बाद लन्दन में फिसड्डी रही तो पकिस्तान में खूब ढोल नगाड़े बजाए गए ।
सही मायने में भारत को एशिया कप से श्री लंका ने बाहर किया है लेकिन कोसा जा रहा है पाकिस्तान को , जिसने हमें हरा कर वाह वाह लूटी । हार जीत के इन समीकरणों के चलते भारतीय क्रिकेट प्रेमियों का मिजाज भी बिगड़ गया है । आलम यह है कि जिनके बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं और जिनके चूल्हे क्रिकेट के कारण जल रहे हैं वे भी गुस्से में तमयमाए हैं और क्रिकेट पर प्रतिबंध लगाने जैसे नारे लगा रहे हैं । इनमें ऐसे तथाकथित क्रिकेट लेखक और पत्रकार भी शामिल हैं जिनकी जिंदगी क्रिकेट चाटुकारिता में बीत गई । स्वर्गीय अटल जी के शब्दों में कहें तो, “ये अच्छी बात नहीं है”।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |