टोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन के बाद देश के खेल आकाओं ने लगे हाथ दावा कर डाला कि 2028 के ओलंपिक तक भारत खेल महाशक्ति बन जाएगा। खिलाड़ियों की उपलब्धि की आड़ में पब्लिसिटी पाने का खेल शुरू हो गया। ऐसे में भारतीय खेलों के कर्णधार यह भूल गए कि खेलों में बड़ी कामयाबी के लिए साधन सुविधाएं, निरंतर अभ्यास , अनुशासन और कड़ी मेहनत की भी जरूरत पड़ती है।
ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि देश का खिलाड़ी दुखी है। उसे मेहनत का फल नहीं मिल पा रहा। खेलों के रक्षक भक्षक बन कर उसकी राह में कांटे बिछा रहे हैं। खेलों के ठेकेदार अपनी कुर्सी बचाने के लिए तमाम भ्रष्ट आचरण तो कर ही रहे हैं , खिलाड़ी को रोने पीटने और कोर्ट कचहरी जाने के लिए विवश कर रहे हैं। देश के गणमान्य खिलाड़ी, कोच, अभिभावक और खेल प्रेमी इस कदर टूट चुके हैं कि आज के दौर को भारतीय खेल इतिहास का सबसे बुरा और शर्मनाक दौर कहने के लिए विवश हैं।
खेल आयोजनों में ईमानदारी से नियमों का पालन करना, पदक जीतना और रिकार्ड बनाना खिलाड़ी के लिए गौरव की बात होती है लेकिन जब खेलों पर यौन शोषण, अनुशासन हीनता, बेइमानी और अफसर शाही हावी हो जाए तो समझ लें देश के खेलों में कुछ भी ठीक ठाक नहीं चल रहा। ब्रज भूषण शरण सिंह कुछ पहलवानों की नजर में गुनहगार हैं। उनसे पहले हरियाणा के खेल मंत्री और हॉकी ओलंपियन संदीप सिंह का कुक्रित्य भी सुर्खियों में रहा। फिलहाल दोनों ही मामलों की जांच चल रही है। अन्य खेलों में भी महिला खिलाड़ियों के साथ दुराचार के मामले कोर्ट कचहरी में बंद पड़े हैं।
जहां तक कुश्ती की बात है तो देश के सबसे सफल खेल में विवाद दर विवाद सामने आ रहे हैं और कुश्ती फेडरेशन पर हर तरफ से थू थू हो रही है। मार्शल आर्ट्स खेलों का हाल तो और भी बुरा है। जूडो, कुराश ,कराटे, कबड्डी, मुक्केबाजी , तायकवांडो और अन्य में गंदी राजनीति बुरी तरह हावी है। इन खेलों के एक से ज्यादा बाप हैं, जिनके अपने अपने दावे हैं। खिलाड़ियों का जमकर शोषण हो रहा है और मजबूर खिलाड़ी कोर्ट का रुख कर रहे हैं। डोप के मामले भी बढ़ रहे है। गुटबाज अधिकारी खेल मंत्रालय और आईओए की जरा भी परवाह नहीं कर रहे। सच तो यह है फेडरेशन, आईओए, साई और खेल मंत्रालय में तालमेल और गंभीरता की कमी साफ नजर आती है।
हालांकि एशियाड और ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों और अधिकारियों के चयन पर हमेशा से राजनीति होती आई है लेकिन इस बार चयन में घोटाले, गुटबाजी, नशाखोरी , शोषण और प्रशासनिक विफलता हर तरफ हावी हैं। नतीजन इस दौर में खेल से जुड़े तमाम शीर्ष संस्थान और उनकी मशीनरी पूरी तरह फेल है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |