आज़ादी पूर्व (1941)से आयोजित की जा रही संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल प्रतियोगिता जैसे जैसे आगे बढ़ रही है खेल का स्तर, खिलाड़ियों का रुझान और देश में फुटबॉल को संचालित करने वाली फेडरेशन का चरित्र लगातार गिरावट की ओर अग्रसर हैं। यह सही है कि पिछले दो सालों से कोरोना खेल आयोजनों से खेल रहा है लेकिन यह भी सच है कि जहां चाह है वहां राह निकल ही आती है।
जापान ने घोर बीमारी के फैलते टोक्यो ओलंम्पिक का सफल आयोजन किया। तत्पश्चात देश विदेश में अनेकों खेल आयोजन किए जा रहे हैं। यूरोपियन फुटबॉल लीग, लेटिन अमेरिकन विश्व कप क्वालीफायर , इंग्लैंड, इटली, जर्मनी, फ्रांस और तमाम देशों में क्लब स्तरीय आयोजन कोरोना और तमाम बीमारियों के चलते आयोजित किए गए। भारत में आईएसएल और आई लीग जैसे पेशेवर आयोजन भी किए गए लेकिन संतोष ट्राफी के निर्णायक मुकाबले आयोजित नहीं हो पा रहे। जानते हैं क्यों? क्योंकि एआईएफएफ की नीयत में खोट है।
साल 2020 के बाद 2021 के संतोष ट्राफी मुकाबले भी आधे अधूरे लटके हैं। एएआईएफएफ कह रहा है कि मार्च अप्रैल में जब भी मौका मिलेगा खाना पूरी कर ली जाएगी। है ना हैरानी वाली बात। पहले इस आयोजन मे उम्र की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन कुछ सालों से उभरते खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए 23 साल तक के खिलाड़ियों के लिए आयोजन निर्धारित किया गया , जोकि कारगर साबित नहीं हो पा रहा।
दरअसल, संतोष ट्राफीके तब तक ही मायने थे जब यह आयोजन सीमाओं से नहीं बंधा था और देशभर के श्रेष्ठ खिलाड़ी इस आयोजन में भाग लेते थे। तब बंगाल,महाराष्ट्र, पंजाब, आंध्रप्रदेश, केरल, गोवा, कर्नाटक और पूरे देश के टाप खिलाड़ियों का जलवा देखते ही बनता था। हर खिलाड़ी का पहला सपना अपने राज्य के लिए खेलना और दूसरा सपना देश का प्रतिनिधित्व करना होता था। लेकिन रुपए डालरों की चमक दमक के आगे देश प्रदेश आईएसएल से पीछे छूट गए हैं,जोकि भारतीय फुटबाल का सबसे दुखद सत्य है।
जो देश अपनी राष्ट्रीय चैंपियनशिप को लेकर इस कदर लापरवाह है, भला मजबूत राष्ट्रीय टीम का गठन कैसे कर पाएगा! शायद यही कारण है कि संतोष ट्राफी का असंतोष भारतीय फुटबाल का अभिशाप बन गया है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |