भले ही पकिस्तान से हमारी नहीं पटती, उसके साथ हमारे रिश्ते लगातार बिगड़ रहे हैं लेकिन भारत को यदि हॉकी में खोया सम्मान फिर से अर्जित करना है तो हमें पकिस्तान की हॉकी की सलामती की दुआ भी जरूर करनी चाहि। यह बात कहने सुनने में अजीब जरूर लगती है लेकिन यह न भूलें कि भारत और पकिस्तान के बीच जब तक कड़ी प्रतिद्वंद्विता रही दोनों देशों की हॉकी ने लगातार अपना दबदबा बनाए रखा।
विश्व हॉकी पर सरसरी नजर डालें तो ऑस्ट्रेलिया, हालैंड, जर्मनी, बेल्जियम, इंग्लैण्ड,स्पेन, न्यूजीलैंड, पोलैंड आदि यूरोपीय देश तब तक अपना दबदबा नहीं बना पाए थे जब तक भारत और पकिस्तान की हॉकी के बीच कट्टर दुश्मनी बरकरार रही। आज़ादी से पहले भारत ने मेजर ध्यान चंद की अगुवाई में जो तीन ओलम्पिक स्वर्ण जीते उनमे हिन्दू मुस्लिम खिलाडी एक टीम और एक देश के रूप में उतरे थे। हालाँकि बंटवारे के बाद भी भारतीय टीम में सर्व धर्म के खिलाडी खेलते रहे हैं लेकिन लगातार तीन स्वर्ण जीतने के बाद भारतीय हॉकी कमजोर पड़ने लगी। 1952, 56 और 60 में लगातार खिताब जीतने के बाद आखिरकार 1960 के रोम ओलम्पिक में पकिस्तान ने पहली बार भारत का वर्चश्व तोड़ दिखाया। हालाँकि चार साल बाद टोक्यो ओलम्पिक में भारत ने पकिस्तान से बदला चूकते हुए ओलम्पिक गोल्ड जीता। इसके साथ ही भारतीय हॉकी के पतन की कहानी शुरू होती है।
टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम का प्रदर्शन शनदार रहा लेकिन पकिस्तान की गैर मौजूदगी को शायद भारतीय हॉकी प्रेमियों ने भी महसूस किया होगा। एशिया की चुनौती हालाँकि मेजबान जापान ने भी पेश कि लेकिन जापान और कोरिया जैसे देशों की हॉकी भारत और पकिस्तान के स्तर को कभी भी नहीं छू पाई। हॉकी जानकारों के अनुसार जिस आयोजन में भारत और पकिस्तान की टीमें नहीं उसमें असली खेल का मज़ा शायद ही मिलता हो। पूर्व खिलाडियों के अनुसार भारत और पकिस्तान के बिना उच्च स्तरीय खेल की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे में दोनों देशों के पूर्व चैम्पियन और हॉकी प्रेमी चाहते हैं की भारत और पकिस्तान की हॉकी प्रतिद्वंद्विता कभी ख़त्म नहीं होनी चाहिए। वरना एशियाई हॉकी का अस्तित्व भी समाप्त हो सकता है।
भारत ने मॉस्को और पकिस्तान ने लॉसएंजेल्स खेलों में खिताब जीते लेकिन दोनों देशों की कमजोरियां पकड़ लेने के बाद यूरोपीय टीमों ने फिर कभी एशिया की हॉकी को पनपने नहीं दिया। रियो ओलम्पिक में तो अर्जेंटीना ने भी कमाल कर दिखाया और ओलम्पिक गोल्ड लेटिन अमेरिका की सैर भी कर आया। इस बीच भारत और पकिस्तान की हॉकी को बहुत बुरे दिन देखने पड़। इससे बुरा क्या हो सकता था कि 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में भारत और रियो एवं टोक्यो ओलम्पिक में पकिस्तान ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाए।
पाकिस्तान अपनी करतूतों के चलते खेल जगत से कट रहा है। दुनिया के बहुत से देश उसके साथ खेल संबंध जारी रख पाने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन पाकिस्तान की हॉकी बर्बाद हुई तो असर भारत पर भी पड़ेगा। आखिर कब तक भारतीय हॉकी एशिया का बोझ अपने कंधों पर ढोती रहेगी?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |