खेल इतिहास पर सरसरी नज़र डालें तो टेनिस दिग्गज रोजर फेडरर जैसी विदाई शायद ही किसी खिलाडी की हुई हो । इस ऐतिहासिक विदाई का जो भी गवाह बना वह ग़मगीन था । कोई आंसू बहा रहा था तो कोई अपने आंसू छिपा रहा था । और तो और खेल जीवन के रोजर के कटटर प्रतिद्वंद्वी भी बिलख बिलख कर, सुबकते हुए या आँखों के आंसू छिपाते हुए रोते देखे गए । खेल विशेषज्ञों की राय में ऐसी विदाई का सौभाग्य शायद ही कभी किसी और खिलाडी को नसीब हुआ होगा । फेडरर और उनके कटटर प्रतिद्वंद्वी रफा नडाल की भावुक तस्वीर जिस किसी ने देखी वह स्तब्ध रह गया ।
यह भूमिका इसलिए बाँधी गई है क्योंकि ऐसे खिलाडी बिरले ही होते हैं जिनके सन्यास पर खेल जगत उदास हो जाता है या मायूसी छा जाती है । जहां तक भारतीय खिलाडियों की बात है तो मेजर ध्यान चंद , सरदार बलबीर सिंह , सरदार मिल्खा सिंह, पीटी उषा , सुनील गावस्कर, विजय अमृतराज और कुछ हॉकी खिलाडियों के सन्यास पर भारतीय खेल जगत ने इतना जरूर पूछा कि इनके बाद कौन ? अर्थात हमें इस बात की चिंता सताने लगती है कि जो बड़े खिलाडी सन्यास ले रहे हैं उनके खाली स्थान की भरपाई कोई कर पाएगा या नहीं ।
बेशक, फेडरर की विदाई अभूतपूर्व रही जिसके बारे में विराट कोहली ने कहा कि जब खेल जगत और आपके खेल प्रतिद्वंद्वी भी आपके लिए रोते हैं तो समझ लीजिए कि ईश्वर ने आपको क्यों प्रतिभावान बनाया और शायद यही खेल की खूबसूरती होती है । लेकिंन भारतीय खेलों में ऐसा कुछ शायद ही कभी देखने को मिलता हो । शुरुआत क्रिकेट से ही करें तो ऐसा कोई माई का लाल नहीं जिसने सही समय पर सन्यास लिया हो और जिसके विदाई समारोह में किसी ने आंसू बहाए हों । हाँ, सुनील गावस्कर के अचानक क्रिकेट छोड़ने कि खबर से बहुत से भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को दुःख जरूर हुआ था ।
जब से क्रिकेट में रुपए डालरों कि बरसात शुरू हुई है कोई भी खिलाडी सही समय पर मैदान से नहीं हटना चाहता । कुछ खिलाडी ऐसे भी रहे हैं जिन्हे क्रिकेट बोर्ड और कप्तान द्वारा आगाह किया गया और उन्होंने ऑफ फार्म के चलते दोतीन साल ज्यादा घसीटे । यही हाल हॉकी, फुटबाल और अन्य खेलों का भी रहा है । लेकिन टेनिस का हाल और भी बुरा है । रामनाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन जैसे खिलाडियों ने भारतीय टेनिस को ऊंचाइयों तक पहुंचाया । लियेंडर पेस, महेश भूपति और सानिया मिर्ज़ा ने नाम सम्मान को बरकरार रखा लेकिन उनकी उपलब्धियों को एक दायरे में आसानी से समेटा जा सकता है ।
इसे भारतीय टेनिस का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि 50 साल के लिएंडर पेस और 37 साल की सानिया मिर्ज़ा ने आज भी पूर्ण सन्यास की घोषणा नहीं की है । कारण, उनका स्थान लेने के लिए खिलाडी तैयार नहीं हैं । ज़ाहिर है ओलम्पिक पदक विजेता पेस या सानिया के सन्यास के मायने नहीं रह जाते । भले ही उन्होंने भारतीय टेनिस को बहुत कुछ दिया है लेकिन जिनके लिए देश और दुनिया रो पड़ें ऐसे खिलाडी पेले, ध्यानचंद और फेडरर ही हो सकते हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |