एक सर्वे के अनुसार भारतीय मीडिया अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया की हालत किसी से छिपी नहीं है। जहां तक प्रिंट मीडिया की बात है तो सच्ची और अच्छी खबरों का घोर अकाल पड़ा है। खासकर , खेल पत्रकारिता अपने सबसे शर्मनाक दौर से गुजर रही है अखबारी दुनिया पर सरसरी नजर डालें तो खेल प्रिंट के लिए महज खिलवाड़ रह गए हैं। यदि किसी खेल की खबर ली जाती है तो वह सिर्फ क्रिकेट है। आखिर भारतीय अखबारी दुनिया सिर्फ क्रिकेट की दीवानी क्यों है और बाकी खेलों की खबर क्यों नहीं ली जाती? यह गंभीर विषय है और इस पर चर्चा फिर कभी सही।
जहां तक अन्य खेलों की बात है तो उनको भी कभी कभार किसी पेज पर जगह मिल जाती है। तब जबकि हमारा कोई पहलवान, मुक्केबाज, तीरंदाज, एथलीट, बैडमिंटन खिलाड़ी या कोई अन्य विश्व और ओलंपिक स्तर पर बड़ा करिश्मा करता है या पदक जीत लाता है। अर्थात पदक जीतना या ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने पर ही कोई प्रदर्शन खबर बन पाता है। लेकिन जब हमारे खिलाड़ी डोप टेस्ट में पकड़े जाते हैं, विफल रहते हैं, कोच और अधिकारी यौन शौषण करते हैं, खिलाड़ियों और टीमों के चयन में धांधली होती है, खेल संघों, आईओए और साई द्वारा धोखाधड़ी की जाती है तो भारतीय मीडिया मौन साध लेता है। ऐसे में खेल मंत्रालय और खेल संघों के अधिकारी झूठे बयान झाड़ कर पल्ला झाड़ लेते हैं और सरकारी झूठ छापने वाला मीडिया अपने आकाओं के दिशानिर्देशों पर चल कर खुद को धन्य समझ लेता है।
पिछले कुछ सालों में भारतीय फुटबाल और हॉकी जैसे लोकप्रिय खेलों के स्तर में भारी गिरावट आई है। अन्य खेल भी लगातार पिछड़ रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि खिलाड़ियों के चयन में जमकर धांधली हो रही है। राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में भाग लेने वाली राज्य टीमों के चयन को लेकर शिकायतों का अंबार लगा है। इस गड़बड़ घोटाले में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, एमपी, राजस्थान, ओडिसा, झाड़खंड, उत्तराखंड, यूपी, बिहार और नॉर्थईस्ट के राज्य सबसे आगे रहे हैं। खिलाड़ियों के चयन का सबसे घृणित रूप फुटबाल में देखने को मिला है। राज्य इकाई के अध्यक्ष, चुने गए प्रतिनिधि और एसोसिएशन में दबदबा रखने वाले मनमर्जी से खिलाड़ियों को चुन रहे हैं । जिन्हें फुटबाल पर पैर लगाना नहीं आता वे राज्य इकाई में दबदबा बनाए हैं और उनके अनाड़ी बच्चे राज्य और राष्ट्रीय टीमों की शोभा बढ़ा रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि कोई शिकायत तक नहीं कर सकता।
उस देश में जहां खेल संघों में गुंडे और मौका परस्त जमे बैठे हैं, भला खेल कैसे तरक्की कर सकते हैं? जहां ओलंपिक इकाई और राज्य खेल इकाइयां भ्रष्टाचार और धांधली के लिए कुख्यात हों और चौथा स्तंभ बेदम हो तो ऐसे माहौल में खेलों का भला कैसे होगा?
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Rajendar Sajwan
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |